Captain Deepak Singh: डोडा एनकाउंटर में शहीद हुए कैप्टन दीपक सिंह के बलिदान ने उनके परिवार को गहरे सदमे में डाल दिया है। रक्षाबंधन के पहले यह खबर उनकी दो बहनों के लिए किसी वज्रपात से कम नहीं थी। जब तक उनकी राखियां बंधने का इंतजार कर रही थीं, तब तक उनके भाई का बलिदान हो चुका था। इस घटना ने पूरे परिवार और उनके आस-पास के लोगों को गहरे शोक में डुबो दिया है।
कैप्टन दीपक सिंह के पिता, महेश सिंह, जो पुलिस विभाग से सेवानिवृत्त हो चुके हैं, ने अपने बेटे के बलिदान की खबर कोच्चि (केरल) में सुनी। इस दुखद सूचना के बाद वह रात की फ्लाइट से देहरादून लौटे। कुछ महीने पहले ही परिवार में खुशी का माहौल था, जब दीपक की बहन की शादी हुई थी और हाल ही में बड़ी बहन के घर बेटी का जन्म हुआ था। यह खबर उन खुशियों के बीच एक गहरा सदमा बनकर आई।
परिवार में था खुशियों का माहौल
कैप्टन दीपक सिंह के घर में बीते चार महीनों से खुशियों का सिलसिला जारी था। उनकी बहन की शादी की खुशी और फिर हाल ही में परिवार में एक नए सदस्य के आगमन से सब खुश थे। लेकिन यह खुशी अधिक समय तक नहीं टिक पाई। रक्षाबंधन से पहले आई इस खबर ने परिवार की खुशियों को मातम में बदल दिया।
कैप्टन दीपक सिंह का एक कमरा उनके मेडल्स से भरा हुआ है, जो उन्होंने अपनी पढ़ाई और खेल-कूद में जीते थे। दीपक बचपन से ही मेधावी छात्र रहे हैं और उन्होंने फुटबॉल, हॉकी जैसे कई खेलों में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया था।
कैप्टन दीपक सिंह का अद्वितीय योगदान
दीपक सिंह ने वर्ष 2020 में भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट के रूप में भर्ती होकर देश की सेवा की शुरुआत की। उनकी पढ़ाई सेंट थॉमस स्कूल, बुद्धा चौक, देहरादून से हुई थी। उनका सपना था कि वे सेना में जाकर देश की सेवा करें, और उन्होंने इसे पूरा भी किया।
दोनों बहनों की शादी के बाद परिवार अब 25 वर्षीय दीपक की शादी की तैयारियों में जुटा था। हालांकि, दीपक ने अपनी शादी के लिए परिवार से एक साल का समय मांगा था, ताकि वह राष्ट्रीय राइफल की सेवाएं पूरी कर सके।
प्रेरणा का स्रोत: बचपन से ही सेना में जाने का सपना
दीपक सिंह बहुत छोटे थे जब उनके पिता पुलिस लाइन में आकर बस गए थे। बचपन से ही पुलिस की परेड देखते हुए दीपक ने सेना में जाने का निर्णय लिया। यह प्रेरणा ही उन्हें भारतीय सेना में ले गई, और 2020 में वे भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) से पासआउट हुए।
आज उनके बलिदान ने न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरे देश को गर्व से भर दिया है। लेकिन यह गर्व उस दर्द और शोक को कम नहीं कर सकता जो उनके परिवार को सहना पड़ रहा है। रक्षाबंधन से पहले इस बलिदान ने परिवार की खुशियों को मातम में बदल दिया है, और उनके घर आंगन में एक गहरा सन्नाटा पसरा हुआ है।