सद्गुरु ईशा फाउंडेशन को Supreme Court से बड़ी राहत मिली है। यह राहत मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपील के बाद मिली है, जिसमें ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज सभी क्रिमिनल केस की जानकारी देने का निर्देश पुलिस को दिया गया था। यह आदेश एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर एस. कामराज की ओर से दायर हेबियस कॉर्प्स याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया था।
हाईकोर्ट के आदेश का संदर्भ
कामराज ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए आरोप लगाया था कि उनकी दो पढ़ी-लिखी बेटियों को ईशा फाउंडेशन के योग केंद्र में बंधक बना लिया गया है। इस पर सुनवाई के दौरान मद्रास हाईकोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया कि वे इस मामले की जानकारी प्रस्तुत करें।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने का निर्णय लिया। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि ऐसे संस्थान में पुलिसकर्मियों की फौज नहीं भेजी जा सकती। उन्होंने यह भी कहा कि वे चैंबर में ऑनलाइन मौजूद दोनों महिलाओं से बात करेंगे और उसके बाद आदेश पढ़ेंगे।
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जांच की स्थिति
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को अपने पास ट्रांसफर कर दिया है, और अब जांच की स्टेटस रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जमा की जाएगी। अगली सुनवाई 18 अक्टूबर को होगी।
महिलाओं का बयान
कामराज की बेटियों ने फोन पर बातचीत के दौरान चीफ जस्टिस को बताया कि वे अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं और कभी भी बाहर आ जा सकती हैं।
ईशा फाउंडेशन का पक्ष
ईशा फाउंडेशन ने यह भी स्पष्ट किया है कि उनकी बेटियों की उम्र 42 और 39 साल है, और उन्होंने स्वेच्छा से उनके साथ रहने का विकल्प चुना है। फाउंडेशन ने यह भी कहा कि वे विवाह न करने और संन्यासी बनने का दबाव नहीं डालते, क्योंकि यह एक व्यक्तिगत निर्णय है।
मामले की सुनवाई के दौरान मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीशों ने फाउंडेशन के संस्थापक से सवाल किया कि एक व्यक्ति जो अपनी बेटियों को स्थापित करने में सफल रहा है, वह दूसरों की बेटियों को संन्यास लेने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहा है।