Uttar Pradesh:RLD प्रमुख जयंत चौधरी ने Loksabha Election 2024 से पहले BJP से गठबंधन किया। बीजेपी को उम्मीद थी पश्चिम में भाजपा को मजबूती मिलेगी और जाटों की नाराजगी दूर करेगी जिसका उसे इस चुनाव में फायदा पहुंचेगा। लेकिन भाजपा इतिहास को भूल गई थी कि 2009 में हुए रालोद-भाजपा गठबंधन में अपनी मुजफ्फरनगर सीट भी गंवाई थी। बिजनौर से 2009 में संजय चौहान ने आरएलडी के टिकट पर सांसद बने थे।
इस बार उनके बेटे और मीरापुर से रालोद विधायक चंदन चौहान ने बिजनौर से जीत हासिल की। सबकी निगाहें मुजफ्फरनगर सीट पर टिकी थी पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट भाजपा-रालोद गठबंधन को रास नहीं आ रही है। 2009 में गठबंधन से पूर्व सांसद अनुराधा चौधरी चुनाव हार गई थी, जबकि इस बार डॉ संजीव बालियान को हार का सामना करना पड़ा। अनुराधा और बालियान की गिनती बड़े जाट नेताओं में है।
इस गठबंधन में आरएलडी को तगड़ा फायदा पहुंचाया लेकिन भाजपा की पश्चिम में सीट कम हो गई पश्चिमी यूपी के नतीजों ने भाजपा के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। भगवा खेमे को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। हालांकि रालोद को जरूर संजीवनी मिल गई। वह अपने हिस्से की बिजनौर और बागपत सीटें जीतने में कामयाब रही। रालोद ने जो दो सीटें जीतीं उसमें एक पहले से भाजपा के पास थी। साथ ही आरएलडी ने योगी सरकार में अपने दलित विधायक अनिल कुमार को कैबिनेट मंत्री बनवाया, वहीं एक एमएलसी सीट भी मिल गई। अब बागपत से राजकुमार सांगवान के रूप में एक जाट और बिजनौर से चंदन के रूप में एक गुर्जर चेहरा सांसद बनवा लिया। बता दें किसानों के मसीहा पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह को भाजपा की केंद्र सरकार ने “भारत रत्न” दिया है।
जमीन पर नहीं जुड़ सके BJP और RLD के कार्यकर्ता:
भाजपा और रालोद साथ तो आ गए लेकिन जमीन पर इन पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच सही तालमेल नहीं दिखा जो गठबंधन में होना चाहिए था। कई स्थानों पर दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच मारपीट की घटना भी सामने आई। ऐसे में माना यह भी जा रहा है कि कार्यकर्ताओं के बीच सामंजस्य न बिठा पाने का खामियाजा भी भाजपा को ही भुगतना पड़ा। चर्चा यह भी है कि रालोद के कोटे की बागपत और बिजनौर सीटों पर जाटों ने भावनात्मक रूप से सहयोग किया, जबकि अन्य सीटों पर तटस्थभाव रखा।
मुजफ्फरनगर से क्या खत्म हो गया चौधरी परिवार का रुतबा?
मुजफ्फरनगर सीट पर रालोद की यह लगातार तीसरी हार है। 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बसपा दोनों ने चौधरी अजित सिंह का समर्थन किया था। इन सबके बावजूद भाजपा ने यहां अजित सिंह को 6 हजार से अधिक वोटों से हरा दिया था। इस बार रालोद साथ आई तो माना जा रहा था कि संजीव बालियान आराम से यह सीट एक बार फिर जीत सकते हैं, लेकिन नतीजा आया तो हरेंद्र मलिक चुनाव जीत गए। मुजफ्फरनगर में भाजपा उतने वोट भी नहीं ले पाई जितने उसे अकेले लड़ने पर मिले थे। उसके लगभग एक लाख वोट कम हो गए। देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र में एक बार फिर से भाजपा सरकार बनने के बाद क्या जयंत चौधरी को वह महत्व मिलता है जो चुनाव से पहले मिला था?
मुजफ्फरनगर सीट पर बीजेपी को दोनों बार हार मिली, जबकि बिजनौर सीट पर दोनों बार गठबंधन को जीत मिली है। संजीव बालियान के चुनाव हारने पर अब जयंत के लिए मैदान खाली है। जयंत अब खुद जाटों के बड़े नेता बन सकते हैं! पश्चिम यूपी में भाजपा को कोई खास फायदा नहीं पहुंचा लेकिन जयंत के लिए सोने पर सुहागा हो गया अब उन्हें अब अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए मौका मिल गया है।