निदा फ़ाज़ली के 10 शानदार शेर

सुमित कुमार 

बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता, जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता

अब किसी से भी शिकायत न रही, जाने किस किस से गिला था पहले

कोशिश के बावजूद ये इल्ज़ाम रह गया, हर काम में हमेशा कोई काम रह गया

हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी, जिस को भी देखना हो कई बार देखना

अब ख़ुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला, हम ने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला

होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है, इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है

ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को, बदलते वक़्त पे कुछ अपना इख़्तियार भी रख

हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ सुना जाए, कभी तो हौसला कर के नहीं कहा जाए

बदला न अपने-आप को जो थे वही रहे, मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे 

यक़ीन चाँद पे सूरज में ए'तिबार भी रख, मगर निगाह में थोड़ा सा इंतिज़ार भी रख