AI Scientist: आजकल टेक्नोलॉजी की दुनिया में एक नई चीज़ ने सबका ध्यान खींचा है—AI रिसर्चर। हाल ही में Sakana AI Labs ने एक ऐसा सिस्टम बनाया है, जिसे वो ‘AI Scientist’ कह रहे हैं। इस सिस्टम का दावा है कि यह पूरी तरह से ऑटोमेटेड होकर नए-नए वैज्ञानिक खोज कर सकता है, खासकर मशीन लर्निंग के क्षेत्र में। और इसके लिए लागत भी केवल $15 प्रति पेपर बताई जा रही है—यानी एक रिसर्चर के लंच के बराबर। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह तकनीक वास्तव में इतनी असरदार है, जितना इसे बताया जा रहा है?
AI रिसर्चर का काम कैसे करता है?
विज्ञान की दुनिया में बहुत सारा ज्ञान पहले से ही लिखा हुआ है। लाखों रिसर्च पेपर्स ऑनलाइन उपलब्ध हैं, जिन्हें इस AI सिस्टम ने अच्छे से पढ़ और समझ लिया है। इसी जानकारी के आधार पर AI नए-नए पेपर्स तैयार करता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह AI वास्तव में कुछ नया और उपयोगी बना सकता है, या बस पुरानी चीजों को ही दोहरा रहा है?
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क्या AI कर सकता है नई खोज?
Sakana AI ने अपने सिस्टम को इस तरह बनाया है कि यह नए और अनोखे विचारों को खोज सके। पहले, यह सिस्टम नए पेपर के आइडिया को स्कोर करता है और अगर कोई आइडिया पहले से मौजूद है, तो उसे हटा देता है। फिर, एक और AI मॉडल पेपर की गुणवत्ता और उसकी नयापन को परखता है।
AI से बने पेपर्स कितने भरोसेमंद हैं?
AI द्वारा तैयार किए गए पेपर्स की गुणवत्ता पर काफी सवाल उठ रहे हैं। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इन पेपर्स की गुणवत्ता इतनी अच्छी नहीं है, जितनी होनी चाहिए। खुद Sakana के सिस्टम ने भी अपने आउटपुट्स को कमजोर बताया है। हालांकि, तकनीक के विकसित होने के साथ इसमें सुधार की संभावना है, लेकिन यह सवाल बना हुआ है कि क्या यह वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए सही दिशा है।
AI रिसर्चर: सहयोगी या खतरा?
AI टूल्स का मुख्य उद्देश्य रिसर्चरों की मदद करना है, न कि उनकी जगह लेना। कई AI सिस्टम्स जैसे Semantic Scholar और PubTator, रिसर्चरों को पहले से मौजूद शोध को समझने और उनका उपयोग करने में मदद करते हैं। लेकिन जब बात आती है Sakana AI Scientist की, तो यह सिस्टम पूरी तरह से ऑटोमेटेड होकर शोध करने का दावा करता है।
अगर AI रिसर्चरों की जगह लेता है, तो इससे विज्ञान की विश्वसनीयता पर सवाल उठ सकते हैं। पहले से ही विज्ञान की दुनिया में ‘पेपर मिल्स’ का खतरा मंडरा रहा है, और ऐसे में अगर AI पेपर्स का ढेर लगा देता है, तो यह समस्या और भी बढ़ सकती है।
क्या है भविष्य?
विज्ञान एक भरोसे पर आधारित प्रक्रिया है। अगर इस प्रक्रिया में AI का दखल बढ़ता है, तो सवाल उठता है कि क्या हमें इन AI रिसर्चरों पर भरोसा करना चाहिए? क्या हम ऐसा वैज्ञानिक इकोसिस्टम चाहते हैं जिसमें AI का इतना बड़ा रोल हो?
AI रिसर्चर की यह नई तकनीक चाहे कितनी भी आकर्षक लगे, लेकिन इसके साथ जुड़े खतरों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जब तक हम इस सवाल का जवाब नहीं ढूंढ लेते कि क्या AI द्वारा किए गए शोध वास्तव में उपयोगी और विश्वसनीय हैं, तब तक हमें सतर्क रहना होगा।