Supreme Court ने अनुसूचित जातियों में उप-श्रेणीकरण की अनुमति दी, अधिक पिछड़े वर्गों के लिए अलग कोटा

New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि अनुसूचित जातियों (SCs) में उप-श्रेणीकरण की अनुमति दी जा सकती है, जिससे अधिक पिछड़े वर्गों के लिए अलग कोटा निर्धारित किया जा सके। यह फैसला एक 7-न्यायाधीशों की पीठ ने 6-1 के बहुमत से सुनाया।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उप-श्रेणीकरण की अनुमति देते समय राज्य 100% आरक्षण नहीं आवंटित कर सकते। साथ ही, उप-श्रेणीकरण को उचित ठहराने के लिए राज्य को वास्तविक आंकड़ों के आधार पर यह साबित करना होगा कि उप-श्रेणी का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है।

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मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि इस निर्णय में 6 न्यायाधीशों का सहमति है, जबकि न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी ने असहमति जताई। पीठ ने 2004 के ई.वी. चिन्नैया निर्णय को पलटते हुए कहा कि अनुसूचित जातियों को एक समान समूह मानना और उन्हें और विभाजित नहीं करना उचित नहीं था।

फैसले के मुख्य बिंदु

  1. उप-श्रेणीकरण का अधिकार: मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने बताया कि उप-श्रेणीकरण संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 341(2) का उल्लंघन नहीं करता। उप-श्रेणीकरण के लिए राज्य को ठोस और मापनीय आंकड़ों के आधार पर यह साबित करना होगा कि विशेष उप-श्रेणी का प्रतिनिधित्व अधूरा है।

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  2. अधिक पिछड़े वर्गों को प्राथमिकता: न्यायमूर्ति बीआर गवई ने कहा कि राज्य को अधिक पिछड़े समुदायों को प्राथमिकता देने की जिम्मेदारी है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि “क्रीमी लेयर” का सिद्धांत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों (SC/ST) पर भी लागू किया जाना चाहिए, ताकि आरक्षण का लाभ उन लोगों तक पहुंचे जो वास्तव में इसकी आवश्यकता में हैं।
  3. जस्टिस त्रिवेदी का असहमति: न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी ने अपनी असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि राष्ट्रपति द्वारा अनुसूचित जातियों की सूची में कोई भी बदलाव राज्य नहीं कर सकते। उनका कहना था कि इस तरह के उप-श्रेणीकरण से अन्य वर्गों के लाभ में कमी आ सकती है और यह राज्य के शक्ति के दुरुपयोग के समान हो सकता है।

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मनीष कुमार एक उभरते हुए पत्रकार हैं और हिंदी States में बतौर Sub-Editor कार्यरत हैं । उनकी रुचि राजनीती और क्राइम जैसे विषयों में हैं । उन्होंने अपनी पढ़ाई IMS Noida से की है।
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