बिहार में एक बार फिर विशेष राज्य के दर्जे को लेकर सियासी बवाल मच गया है। विपक्ष सीएम नीतीश कुमार से इस्तीफे तक की मांग कर रहा है। वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने लोकसभा में केंद्र सरकार की तरफ से जवाब देते हुए कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देना संभव नहीं है। इस पर जेडीयू नेता विजय चौधरी ने सोमवार (22 जुलाई) को अपनी बात रखी। उन्होंने केंद्र को क्लियर कट जवाब दिया है।
नीतीश कुमार की सरकार के लिए यह बड़ा झटका है, क्योंकि केंद्र ने बिहार को विशेष श्रेणी का दर्जा देने से इनकार कर दिया है, बावजूद इसके कि एनडीए के सहयोगी होने के नाते बिहार ने इस मांग को लोकसभा चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद जोर-शोर से उठाया था। बिहार की राजनीतिक पार्टियों और नेताओं ने इस मांग को कई बार दोहराया है, विशेषकर राज्य की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को सुधारने के उद्देश्य से।
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विशेष राज्य का दर्जा क्या है और क्यों इसकी मांग की जाती है, इस पर चर्चा करने से पहले यह समझना जरूरी है कि बिहार की मौजूदा स्थिति क्या है और इस मांग के पीछे की राजनीति क्या है।
विशेष राज्य का दर्जा और इसकी मांग का कारण
विशेष राज्य का दर्जा एक ऐसा मान्यता है जिसे केंद्र सरकार उन राज्यों को देती है जो कुछ विशेष आर्थिक, भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियों से जूझ रहे होते हैं। विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त करने वाले राज्यों को केंद्र सरकार से विशेष आर्थिक सहायता और कर में राहत मिलती है, जिससे इन राज्यों को अपने विकास कार्यों में तेजी लाने का मौका मिलता है।
बिहार की मांग और केंद्र का इनकार
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त करने के लिए कई बार केंद्र सरकार से अनुरोध किया है। उनका तर्क है कि बिहार की आर्थिक स्थिति अन्य राज्यों की तुलना में बहुत पिछड़ी हुई है और राज्य को विशेष दर्जा मिलने से विकास कार्यों में तेजी आ सकती है। इसके बावजूद, केंद्र सरकार ने इस मांग को खारिज कर दिया है।
वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने लोकसभा में कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देना संभव नहीं है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) ने पहले विशेष राज्य का दर्जा उन राज्यों को दिया था जो पहाड़ी और कठिन भौगोलिक स्थिति, कम जनसंख्या घनत्व, आदिवासी जनसंख्या का बड़ा हिस्सा, सीमावर्ती स्थान, आर्थिक एवं अधोसंरचना की पिछड़ापन जैसी विशेषताओं से परिभाषित होते थे।
जेडीयू और आरजेडी की प्रतिक्रिया
केंद्र सरकार के इस निर्णय पर जेडीयू नेता विजय चौधरी ने अपनी नाराजगी व्यक्त की और कहा कि केंद्र को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा न मिलना राज्य के विकास में बड़ी बाधा है।
आरजेडी नेता मनोज कुमार झा ने भी विशेष राज्य के दर्जे और विशेष पैकेज की मांग की है। उन्होंने कहा कि यह मांग बिहार-झारखंड विभाजन के समय से चली आ रही है। उन्होंने कहा, “इस मांग को कई लोग अवास्तविक मानते हैं… यह मांग बिहार-झारखंड विभाजन के समय से चली आ रही है… राजनीतिक पार्टियों के अलावा, हम चाहते हैं कि केंद्र सरकार की नीतियों में बदलाव हो जो बिहार को मजदूरों की आपूर्ति का केंद्र मानती हैं… हम चाहते हैं कि विशेष राज्य का दर्जा और विशेष पैकेज दोनों मिलें।”
पुरानी रिपोर्ट और नए मानदंड
2012 में एक अंतर-मंत्रिस्तरीय समूह (आईएमजी) ने बिहार की विशेष राज्य के दर्जे की मांग की समीक्षा की थी और पाया कि बिहार इस मानदंड पर खरा नहीं उतरता। इसके अलावा, 14वें वित्त आयोग की रिपोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि अब और किसी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जाएगा। वित्त राज्यमंत्री ने लोकसभा में बताया कि पहले विशेष राज्य का दर्जा एनडीसी द्वारा कुछ विशेष विशेषताओं के आधार पर दिया गया था, जैसे पहाड़ी और कठिन भौगोलिक स्थिति, कम जनसंख्या घनत्व, आदिवासी जनसंख्या का बड़ा हिस्सा, सीमावर्ती स्थान, आर्थिक एवं अधोसंरचना की पिछड़ापन और राज्य के वित्त की अस्थिरता।
बिहार की मौजूदा स्थिति
बिहार की मौजूदा आर्थिक स्थिति को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि राज्य को विकास कार्यों में सहायता की आवश्यकता है। बिहार की आर्थिक और सामाजिक स्थितियों में सुधार लाने के लिए विशेष राज्य का दर्जा मिलना महत्वपूर्ण हो सकता है। बिहार की आर्थिक स्थिति अन्य राज्यों की तुलना में बहुत पिछड़ी हुई है, और यह स्थिति राज्य के विकास में बड़ी बाधा है।
नीतीश कुमार की सरकार के लिए यह बड़ा झटका है, क्योंकि केंद्र ने बिहार को विशेष श्रेणी का दर्जा देने से इनकार कर दिया है, बावजूद इसके कि एनडीए के सहयोगी होने के नाते बिहार ने इस मांग को लोकसभा चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद जोर-शोर से उठाया था। बिहार की राजनीतिक पार्टियों और नेताओं ने इस मांग को कई बार दोहराया है, विशेषकर राज्य की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को सुधारने के उद्देश्य से।