Opinion: बिजनेसमैन आनंद महिंद्रा ने हाल ही में एक संवेदनशील वीडियो शेयर किया है, जिसने समाज में बेटियों के प्रति प्रचलित भेदभाव और भ्रूण हत्या की कुरीतियों को उजागर किया है। इस 2.48 मिनट के वीडियो में मां की आहें और बेटियों के प्रति समाज की अस्वीकृति को बखूबी दर्शाया गया है। यह वीडियो न केवल इमोशनल है, बल्कि यह हमें उस वास्तविकता से रूबरू कराता है जहाँ बेटियों को अनचाहे बच्चे माना जाता है।
मां की ख्वाहिश: बेटा या बेटी?
समाज में लंबे समय से बेटों को अधिक महत्व दिया जा रहा है। लोग मानते हैं कि बेटे से ही परिवार की प्रतिष्ठा बढ़ती है और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित होती है। इस मानसिकता ने बेटियों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण को जन्म दिया है, जिससे भ्रूण हत्या जैसी भयावह घटनाओं में वृद्धि हुई है। आनंद महिंद्रा का यह वीडियो इस बात की गवाही है कि समाज में अभी भी कितनी गहरी जड़ें जमा ली गई हैं।
यहां हमारे व्हाट्सएप चैनल से जुड़ें
बेटियों को कुचलने का दर्द
वीडियो में दर्शाया गया है कि कैसे कुछ मां अपनी बेटियों को पाने की चाह में सामाजिक दबाव और पारिवारिक अपेक्षाओं के चलते अपने बच्चों को मार देती हैं। यह एक अत्यंत दुःखद घटना है जो मानवता की गहराईयों को छूती है। समाज में बेटियों को कम आंकने की यह प्रवृत्ति न केवल व्यक्तिगत परिवारों को प्रभावित करती है, बल्कि पूरे समाज की नैतिकता पर भी प्रश्न चिह्न लगा देती है।
धर्म, जात-पात और सामाजिक मान्यताएं
धर्म और जात-पात के नाम पर समाज ने कई बार बेटों को तरजीह दी है। यह भूलना आसान नहीं है कि किसी भी धर्म और कोई भी धर्मग्रंथ बेटा-पुत्र के आधार पर भेदभाव को समर्थन नहीं करता। बल्कि, सभी धर्मों में बेटियों को सम्मान और समान अधिकार देने की शिक्षा दी गई है। समाज ने केवल सांस्कृतिक और पारिवारिक दबावों के कारण इन मूल्यों को पीछे छोड़ दिया है।
समाधान की दिशा में कदम
इस समस्या का समाधान केवल व्यक्तिगत स्तर पर नहीं, बल्कि सामाजिक और सरकारी स्तर पर भी आवश्यक है। शिक्षा और जागरूकता अभियान के माध्यम से बेटियों के महत्व को समझाना होगा। कानूनों को सख्त बनाना और उनका कड़ाई से पालन करना भी अनिवार्य है। साथ ही, परिवारों में बेटियों के प्रति प्रेम और सम्मान की भावना को बढ़ावा देना होगा।
मां की आवाज़: एक अपील
आनंद महिंद्रा का यह वीडियो मांओं की उन भावनाओं को व्यक्त करता है जो समाज में बेटियों के प्रति उनकी असंतोष को दर्शाती हैं। यह अपील करती है कि बेटियां सिर्फ बच्चे नहीं, बल्कि परिवार की धरोहर हैं। मांओं को चाहिए कि वे अपनी बेटियों की कद्र करें और उन्हें बिना किसी दबाव के जीवन जीने का अधिकार दें।