Constitution Amendment: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘एक देश, एक चुनाव’ की पहल ने राजनीतिक हलकों में व्यापक चर्चा पैदा कर दी है। हालांकि, संविधान संशोधन के लिए उनके पास संसद में पर्याप्त संख्या नहीं है, फिर भी यह सवाल उठता है कि वह इस पहल पर जोर क्यों दे रहे हैं। ‘एक देश, एक चुनाव’ का उद्देश्य देश में संसदीय और विधानसभा चुनावों को एक साथ आयोजित करना है, जिससे चुनावी खर्चों में कटौती और प्रशासनिक दक्षता में सुधार हो सके।
संविधान संशोधन के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है, जो फिलहाल मोदी सरकार के पास नहीं है। इसके बावजूद, मोदी इस मुद्दे को उठाकर एक व्यापक राजनीतिक और राष्ट्रीय बहस को जन्म देना चाहते हैं। इसके पीछे यह रणनीति हो सकती है कि इस पहल से दीर्घकालिक सुधारों की दिशा में माहौल बनाया जाए और जनता के बीच इसे एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनाकर राजनीतिक समर्थन जुटाया जाए।
यह भी संभव है कि मोदी इसे एक चुनावी रणनीति के रूप में इस्तेमाल कर रहे हों, ताकि आगामी चुनावों में यह मुद्दा प्रमुखता से उभर सके। ‘एक देश, एक चुनाव’ को लेकर बहस जारी है, लेकिन इसके पीछे की रणनीति अब भी साफ नहीं है।
Constitution amendment विपक्ष से बातचीत के लिए गठित की गई टीम
केंद्र सरकार ने इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाने के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और पूर्व कानून मंत्री किरेन रिजिजू को विपक्षी दलों से बातचीत करने की जिम्मेदारी दी है। सरकार इस मुद्दे पर विपक्ष की राय लेने और सहमति बनाने का प्रयास कर रही है, ताकि इस प्रस्ताव को सफलतापूर्वक लागू किया जा सके।
‘एक देश, एक चुनाव’ का क्या है उद्देश्य?
‘एक देश, एक चुनाव’ का मुख्य उद्देश्य देशभर में संसदीय, राज्य विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों को एक साथ कराना है। इस पहल का उद्देश्य चुनावी खर्चों में कटौती, प्रशासनिक कार्यक्षमता में सुधार और बार-बार चुनावी प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न होने वाली बाधाओं को कम करना है। यदि यह प्रस्ताव लागू होता है, तो देश में चुनावी प्रक्रिया सरल और सुव्यवस्थित हो सकती है।
विधेयक की तैयारी
सरकार के इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए सर्दियों के सत्र में विधेयक पेश किए जाने की संभावना है। विधेयक में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी। इसके लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत चाहिए, जो फिलहाल एनडीए के पास नहीं है। हालांकि, सरकार विपक्षी दलों से बातचीत कर इस मुद्दे पर सहमति बनाने का प्रयास कर रही है।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में समिति
‘एक देश, एक चुनाव’ की सिफारिश करने वाली समिति का नेतृत्व पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कर रहे हैं। इस समिति को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि वह इस प्रस्ताव के सभी कानूनी और संवैधानिक पहलुओं का अध्ययन कर सिफारिशें दे। समिति ने चुनावी प्रक्रिया को एकसमान और एक साथ कराने के लिए कई सुझाव दिए हैं, जिन्हें केंद्र सरकार ने स्वीकार किया है।
विपक्ष का रुख
‘एक देश, एक चुनाव’ पर विपक्षी दलों का रुख अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है। कुछ दलों ने इस पहल का समर्थन किया है, जबकि कुछ दलों ने इसे अस्वीकार कर दिया है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का मानना है कि इससे संघीय ढांचे को नुकसान हो सकता है और चुनावी प्रक्रिया पर केंद्रीकरण का खतरा बढ़ सकता है। हालांकि, केंद्र सरकार इस मुद्दे पर सभी दलों से संवाद करने और एक सर्वसम्मत राय बनाने का प्रयास कर रही है।
‘एक देश, एक चुनाव’ के फायदे
समर्थकों का कहना है कि इस पहल से कई फायदे होंगे। सबसे पहले, चुनावी खर्चों में भारी कमी आएगी, क्योंकि बार-बार चुनाव कराने से सरकारों पर बड़ा वित्तीय बोझ पड़ता है। इसके अलावा, प्रशासनिक कामकाज में सुधार होगा और बार-बार आचार संहिता लागू होने से विकास कार्यों में रुकावट नहीं आएगी।
चुनौतियां
हालांकि, इस प्रस्ताव को लागू करने में कई चुनौतियां भी हैं। सबसे बड़ी चुनौती संवैधानिक संशोधन की है, जिसके लिए केंद्र सरकार को दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होगी। इसके अलावा, राज्यों के साथ चुनावी प्रक्रिया को एक साथ समन्वित करना भी एक बड़ा काम होगा।