Pitru Paksha dates 2024 का पहला श्राद्ध 18 सितंबर को किया जाएगा, जिसे प्रतिपदा श्राद्ध के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है, क्योंकि यह 15 दिनों का वह पवित्र समय होता है जब पितृ पृथ्वीलोक पर आते हैं और अपने परिजनों द्वारा किए गए श्राद्ध और तर्पण से तृप्त होते हैं। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों का आभार व्यक्त करते हुए उनके निमित्त श्राद्ध कर्म, पिंडदान, और तर्पण जैसे अनुष्ठान करते हैं।
प्रतिपदा श्राद्ध का दिन उन पितरों के लिए होता है जिनकी मृत्यु किसी भी माह की प्रतिपदा तिथि को हुई हो। इसके अलावा, यदि कोई व्यक्ति अपनी ननिहाल की ओर से श्राद्ध कर्म नहीं कर पाता है, तो इस दिन अपने नाना-नानी का श्राद्ध भी कर सकता है, चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि पर क्यों न हुई हो।
प्रतिपदा श्राद्ध के दिन तर्पण और पिंडदान का विशेष महत्व होता है, जो कुतुप और रौहिण जैसे शुभ मुहूर्त में किया जाता है। इस दिन तर्पण का समय दोपहर 11:50 से शुरू होकर अपराह्न 3:54 तक रहता है, जिसमें पिंडदान और तर्पण करना अत्यंत शुभ माना जाता है। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि श्राद्ध कर्म का समय हमेशा चढ़ते सूर्य के दौरान यानी दोपहर से पहले का होता है, जिससे पितरों की तृप्ति और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पितृपक्ष का यह समय अपने पूर्वजों को याद कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का होता है, जिससे परिवार में सुख, समृद्धि, और शांति का वास होता है।
Pitru Paksha 2024 dates: पहला श्राद्ध 18 सितंबर को, जानिए तर्पण विधि, तिथियां और मुहूर्त
Pitru Paksha 2024 की शुरुआत 18 सितंबर से हो रही है और इस दिन पहला श्राद्ध किया जाएगा। इस दिन को प्रतिपदा श्राद्ध भी कहा जाता है, जो विशेष रूप से उन पितरों के लिए होता है जिनकी मृत्यु प्रतिपदा तिथि को हुई हो। आइए जानते हैं श्राद्ध की विधि, तर्पण के मुहूर्त और पितृपक्ष की तिथियां।
प्रतिपदा श्राद्ध तिथि और मुहूर्त
- प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 18 सितंबर 2024, सुबह 08:04 बजे
- प्रतिपदा तिथि समाप्त: 19 सितंबर 2024, सुबह 04:19 बजे
- श्राद्ध मुहूर्त:
- कुतुप मुहूर्त: सुबह 11:50 से 12:30
- रौहिण मुहूर्त: दोपहर 12:39 से 01:27
- अपराह्न काल: दोपहर 01:27 से 03:54
- श्राद्ध कर्म सूर्योदय से पहले या उसके तुरंत बाद नहीं किया जाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार, चढ़ते सूर्य के समय यानी दोपहर 11:30 से 03:30 तक का समय श्राद्ध और पिंडदान के लिए सर्वोत्तम माना गया है।
श्राद्ध की विधि और तर्पण कैसे करें?
श्राद्ध और तर्पण की प्रक्रिया हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि इसके माध्यम से व्यक्ति अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करता है। शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध कर्म का उद्देश्य पितरों की तृप्ति और उनका आशीर्वाद प्राप्त करना होता है, जो परिवार में सुख-शांति और समृद्धि लाता है।
श्राद्ध करते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि पिंडदान और तर्पण जैसे अनुष्ठान कुतुप या रौहिण मुहूर्त में ही किए जाएं। यह समय अत्यधिक शुभ माना जाता है और इन मुहूर्तों में किए गए श्राद्ध से पितृ प्रसन्न होते हैं। कुतुप मुहूर्त में 11:50 से 12:30 बजे तक और रौहिण मुहूर्त में 12:39 से 01:27 बजे तक तर्पण किया जाता है।
इस अनुष्ठान को संपन्न करने के लिए किसी योग्य ब्राह्मण को बुलाना चाहिए। ब्राह्मण को भोजन कराकर और उन्हें दान देकर श्राद्ध का समापन किया जाता है, जिससे पितृ तृप्त होते हैं और वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। श्राद्ध के दौरान दान, भोजन और अन्य धार्मिक क्रियाएं पितरों की तृप्ति के लिए अनिवार्य मानी जाती हैं, जिससे परिवार पर उनकी कृपा बनी रहती है |