Independence Day 2024: भारत की आजादी की कहानी वीरता, बलिदान और संघर्ष से भरी पड़ी है। 15 अगस्त 1947 को देश ने स्वतंत्रता प्राप्त की, लेकिन इस आजादी के लिए लाखों लोगों ने अपने जीवन का बलिदान दिया। आज हम आपको ऐसे पांच ऐतिहासिक किस्सों के बारे में बता रहे हैं, जो हमारे स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमर हो गए हैं।
1. बलिया की अनोखी आजादी
Independence Day 2024: उत्तर प्रदेश का बलिया जिला भारत की स्वतंत्रता के पांच साल पहले ही आजाद हो गया था। 19 अगस्त 1942 को बलिया ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया और पांच दिन तक आजाद रहा। बलिया में स्वतंत्रता सेनानियों ने 9 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के तहत अंग्रेजों के खिलाफ जुलूस निकाले, रेल पटरियां उखाड़ीं और मालगाड़ियां लूट लीं। 20 अगस्त को बलिया के कलेक्टर ने जिले की सत्ता चित्तू पांडेय को सौंप दी। हालांकि, 24 अगस्त को अंग्रेजी सेना ने फिर से जिले पर कब्जा कर लिया।
2. 26 दिन की लड़ाई में आजाद हुआ मोइरांग
Independence Day 2024: 1943 में सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज ने जापान की मदद से मणिपुर के मोइरांग में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। 26 दिन तक चले इस युद्ध में ब्रिटिश सेना को पीछे हटना पड़ा, और 14 अप्रैल 1944 को मोइरांग को भारत का पहला आजाद इलाका घोषित कर दिया गया।
3. वीर कुंवर सिंह का साहसिक बलिदान
Independence Day 2024: 1858 में 80 वर्षीय क्रांतिकारी वीर कुंवर सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। एक हमले में जब उनकी कलाई में गोली लगी, तो उन्होंने अपने शरीर में जहर फैलने से रोकने के लिए खुद ही अपनी तलवार से अपना हाथ काट लिया। इसके बावजूद, उन्होंने अंग्रेजों को हराकर जगदीशपुर पर कब्जा कर लिया। वीर कुंवर सिंह का बलिदान आज भी याद किया जाता है।
4. तात्या टोपे को दो बार दी गई फांसी
Independence Day 2024: तात्या टोपे, जिन्हें महाराष्ट्र का बाघ कहा जाता था, ने अंग्रेजों के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी। 1859 में अंग्रेजों ने उन्हें धोखे से पकड़ लिया और 15 अप्रैल 1859 को उन्हें फांसी दे दी। अंग्रेजों ने तात्या को एक बार नहीं बल्कि दो बार फांसी पर लटकाया, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वह बच न सकें।
5. खुदीराम बोस का बलिदान
Independence Day 2024: 1907 में बंगाल विभाजन के बाद खुदीराम बोस ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की। उन्होंने नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर बम धमाका किया और कई अंग्रेज अफसरों पर हमला किया। 11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस को फांसी दी गई। फांसी के समय उनके हाथों में भगवत गीता थी और चेहरे पर मुस्कान। वह खुशी-खुशी देश के लिए बलिदान हो गए।