Jammu-Kashmir में आगामी चुनावों के मद्देनजर ज्यादातर एग्जिट पोल हंग असेंबली की संभावना जता रहे हैं। ऐसे में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा द्वारा चुने जाने वाले 5 सदस्यों की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। उपराज्यपाल प्रशासन द्वारा इन सदस्यों को मनोनीत करने के प्रस्ताव पर विवाद मच गया है, जिसमें कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस खुलकर विरोध कर रहे हैं।
Jammu-Kashmir: मनोनीत सदस्यों की भूमिका
उप राज्यपाल द्वारा इन सदस्यों का चुनाव विधानसभा की पहली सिटिंग से पहले होना है, और इन मनोनीत सदस्यों के पास विश्वास मत में वोटिंग का अधिकार होगा। एबीपी के सूत्रों के अनुसार, उप राज्यपाल जिन 5 सदस्यों का मनोनीत करेंगे, उनमें एक महिला, एक पीओके से आया शरणार्थी, 2 कश्मीरी विस्थापित और एक अन्य होगा। प्रत्येक श्रेणी के लिए 5-6 नाम भेजे गए हैं।
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नई विधानसभा का गठन
जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटने के बाद यह पहली बार चुनाव हो रहा है। यहां तीन चरणों में मतदान कराया गया है और नतीजे 8 अक्टूबर को आने हैं। नई सरकार के गठन में मनोनीत विधानसभा सदस्यों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। जम्मू-कश्मीर जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में हाल के संशोधन के अनुसार, इन सदस्यों को निर्वाचित प्रतिनिधियों की तरह ही पूर्ण विधायी शक्तियां और विशेषाधिकार प्राप्त होंगे।
बहुमत का आंकड़ा
इस नई व्यवस्था के साथ, जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पांच मनोनीत सदस्यों समेत कुल 95 सदस्य हो जाएंगे, जिससे सरकार बनाने के लिए बहुमत की सीमा 48 सीटों तक बढ़ जाएगी। उपराज्यपाल गृह मंत्रालय की सलाह के आधार पर इन सदस्यों को मनोनीत करेंगे। यह प्रक्रिया जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में संशोधन के बाद होगी।
विरोध की आवाजें
पीडीपी नेता इकबाल त्रंबू ने इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह व्यवस्था सत्तारूढ़ दल की मदद के लिए बनाई गई है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रवक्ता इमरान डार ने कहा कि यह नई सरकार को कमजोर करेगा। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव सुनील शर्मा ने कहा कि सदस्यों के मनोनयन की प्रक्रिया को निर्वाचित सरकार के पास छोड़ दिया जाना चाहिए, जिसके पास जनादेश है।