Mahatma Gandhi यहूदियों के प्रति सहानुभूति रखते थे, लेकिन उन्होंने फिलिस्तीन में उनके लिए एक अलग देश की मांग को पूरी तरह से खारिज कर दिया था। गांधी ने हमेशा युद्ध और हिंसा का विरोध किया, लेकिन नाजी जर्मनी द्वारा यहूदियों पर किए गए अत्याचारों को देखते हुए, उन्होंने जर्मनी के खिलाफ युद्ध को उचित ठहराया था। इसके बावजूद, गांधी ने यहूदियों के लिए फिलिस्तीन में एक अलग देश के विचार को गलत माना। उनका तर्क था कि जिस तरह इंग्लैंड अंग्रेजों का और फ्रांस फ्रांसीसियों का है, उसी तरह फिलिस्तीन अरबों का है।
गांधी का विरोध और फिलिस्तीन
गांधी के विचार में धर्म के आधार पर अलग देश बनाना न केवल अमानवीय था, बल्कि यह फिलिस्तीन के अरबों पर अन्याय भी होता। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यहूदियों को अपने मौजूदा निवास स्थानों पर सम्मानपूर्वक रहना चाहिए, बजाय इसके कि उन्हें जबरन फिलिस्तीन भेजा जाए। गांधी का कहना था कि यहूदियों के लिए फिलिस्तीन में बसने का एकमात्र तरीका अरबों की सहमति और भरोसे के माध्यम से हो सकता है, न कि ब्रिटिश सैन्य बल के दबाव में।
यहां हमारे व्हाट्सएप चैनल से जुड़ें
भारत का रुख और इजरायल
Mahatma Gandhi: गांधी के इस रुख को स्वतंत्रता के बाद पंडित नेहरू की सरकार ने भी बनाए रखा। 1947 में भारत ने फिलिस्तीन के विभाजन के प्रस्ताव का विरोध किया था। हालांकि, 1950 में भारत ने इजरायल को मान्यता दी, लेकिन दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध 1992 में नरसिम्हाराव की सरकार के दौरान स्थापित हुए।
गांधी का लेख और विवाद
26 नवंबर 1938 को गांधी ने अपने लेख ‘The Jews’ में यहूदियों के लिए अलग देश की मांग को दो आधारों पर अस्वीकार किया था: पहला, कि फिलिस्तीन पहले से ही अरबों का है और दूसरा, ब्रिटिश घोषणा का हिंसक पहलू। गांधी ने यहूदी समुदाय के प्रति सहानुभूति व्यक्त की लेकिन उन्हें यह विश्वास था कि यहूदियों को दुनिया भर में जहां वे बसे हैं, वहां सम्मानपूर्ण व्यवहार मिलना चाहिए।