पाकिस्तान, जो एक समय में आतंकवादियों का सबसे बड़ा निर्यातक माना जाता था, अब एक नए, लेकिन शर्मनाक शीर्षक से पहचाना जा रहा है – “भिखारियों का सबसे बड़ा निर्यातक।” यह बदलाव न केवल पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली को उजागर करता है, बल्कि इस बात की ओर भी इशारा करता है कि कैसे इस्लामाबाद में भीख मांगना अब एक संगठित उद्योग का रूप ले चुका है।
भीख मांगने का संगठित उद्योग
पाकिस्तान के प्रमुख शहरों से लेकर छोटे कस्बों तक, हर जगह आपको भिखारी दिखाई देंगे। यह केवल एक सामाजिक समस्या नहीं है, बल्कि एक व्यापक संगठित उद्योग बन गया है। पाकिस्तान की कराची, इस्लामाबाद, और लाहौर जैसी जगहों में भीख मांगने का काम इतने बड़े पैमाने पर हो रहा है कि इसे नियंत्रित करने के लिए अब कानून बनाए जा रहे हैं। पंजाब कैबिनेट द्वारा हाल ही में पास किया गया कानून भीख मंगवाने के धंधे को गैर-जमानती अपराध करार देता है, जिससे इस व्यवसाय में संलिप्त लोगों को कड़ी सजा मिल सके।
वैश्विक स्तर पर भिखारियों का निर्यात
पाकिस्तान से भिखारियों का निर्यात एक वैश्विक समस्या बन चुका है। सऊदी अरब, इराक, ईरान, और यहाँ तक कि जापान जैसे देशों में भी पाकिस्तानी भिखारी देखे जा चुके हैं। यह स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय को खुद यह स्वीकार करना पड़ा कि पिछले ढाई वर्षों में विदेशों में पकड़े गए 90% भिखारी पाकिस्तानी मूल के थे। पाकिस्तान की इस नई पहचान से न केवल उसकी प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे एक देश, जो पहले आतंकवाद का पर्याय था, अब भिखारियों के निर्यात के लिए बदनाम हो गया है।
भिखारियों की बढ़ती संख्या
पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पाकिस्तान में भिखारियों की संख्या करीब 3 करोड़ 80 लाख तक पहुँच गई है, जो कि पाकिस्तान की सेना के कुल सैनिकों की संख्या से कहीं अधिक है। यह तथ्य चौंकाने वाला है और यह दिखाता है कि पाकिस्तान में रोजगार की स्थिति कितनी दयनीय हो चुकी है। कराची, लाहौर, और इस्लामाबाद जैसे शहरों में भिखारी प्रतिदिन सैकड़ों रुपये कमा लेते हैं, जो किसी अन्य रोजगार से अधिक लाभदायक साबित हो रहा है।
अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
पाकिस्तान में भीख मांगने का उद्योग अब देश की GDP का 12% से अधिक हो चुका है। इस उद्योग से होने वाली वार्षिक कमाई 42 अरब डॉलर तक पहुँच चुकी है, जो पाकिस्तान के विदेशी कर्ज का एक तिहाई हिस्सा चुका सकती है। यह तथ्य पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति की भयावहता को दर्शाता है, जहाँ एक तरफ उद्योग धंधे ठप हो रहे हैं, और दूसरी तरफ भीख मांगना एक संगठित व्यापार बन चुका है।
निष्कर्ष
पाकिस्तान में भीख मांगना अब सिर्फ एक सामाजिक बुराई नहीं रह गया है, बल्कि यह देश की आर्थिक, सामाजिक और अंतरराष्ट्रीय छवि को भी प्रभावित कर रहा है। एक समय आतंकवाद का पर्याय बन चुके पाकिस्तान के लिए अब यह स्थिति और भी शर्मनाक हो गई है, जहाँ उसकी पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भिखारियों के निर्यातक के रूप में हो रही है। इस समस्या का समाधान केवल कानून के माध्यम से संभव नहीं है; इसके लिए व्यापक आर्थिक सुधार और सामाजिक पुनर्गठन की आवश्यकता है। पाकिस्तान को अब आतंकवाद के साथ-साथ अपने भिखारियों की बढ़ती संख्या से भी निपटना होगा, ताकि वह अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि को सुधार सके और अपने नागरिकों को सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर प्रदान कर सके।