Mahatma Gandhi की हत्या 30 जनवरी 1948 को हुई थी और इसके कुछ ही दिनों बाद, 4 फरवरी 1948 को, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके साथ ही देशभर में संघ के स्वयंसेवकों की गिरफ्तारियां की गईं। ये संघ के लिए मुश्किल भरे दिन थे। कांग्रेस और कम्युनिस्ट दल लगातार संघ पर हमला कर रहे थे, और संसद में संघ की ओर से कोई राजनीतिक दल उसका समर्थन नहीं कर रहा था।
नेहरू और पटेल के मतभेद
Mahatma Gandhi की हत्या के बाद, कांग्रेस के भीतर भी गुटबाजी चल रही थी। संघ को लेकर नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल के विचार अलग थे। नेहरू संघ के खिलाफ सख्त थे और संघ पर निगरानी रखने की बात कर रहे थे, वहीं पटेल इसे डंडे से खत्म करने के पक्ष में नहीं थे। उनका मानना था कि संघ को स्नेह और समझ से जीतना चाहिए।
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राजनीतिक दल की आवश्यकता
संघ के भीतर यह विचार उत्पन्न हो रहा था कि संघ की विचारधारा के समर्थन में एक राजनीतिक दल का गठन किया जाए। संघ के कई पदाधिकारी चाहते थे कि संघ एक राजनीतिक भूमिका निभाए। गुरु गोलवलकर, जो संघ के तत्कालीन प्रमुख थे, शुरू में इसके खिलाफ थे। उनका मानना था कि संघ को एक राजनीतिक दल के रूप में सीमित करने से उसकी दबाव क्षमता कम हो जाएगी।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी का समर्थन
1950 में नेहरू-लियाकत समझौते के बाद डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। संघ और मुखर्जी के बीच एक समझ बनती गई, और 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की गई। इस नए राजनीतिक दल ने संघ के विचारधारा को आगे बढ़ाने का कार्य किया।
जनसंघ से भाजपा तक का सफर
Mahatma Gandhi: जनसंघ का राजनीतिक सफर 1977 तक चला। बाद में आपातकाल के बाद जनसंघ का विलय जनता पार्टी में हुआ। हालांकि, 1980 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नाम से एक नए अवतार में जनसंघ का गठन हुआ। भाजपा ने 2014, 2019, और 2024 के लोकसभा चुनावों में बड़ी जीत हासिल की और केंद्र में सत्ता हासिल की। आज भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन चुकी है।