Maharashtra: सांगली जिले के शिराला तालुका में काला चावल और तुलसी चावल की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। दोनों चावलों का रंग काला होने के कारण इन्हें “तुलसी भात” के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि, वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि ये दोनों एक ही प्रजाति के हैं या नहीं। इस क्षेत्र में किसानों ने खरपतवार नियंत्रण के लिए इन चावलों की खेती जारी रखी है, जिससे यह चावल न केवल खेती के लिए बल्कि स्वाद और पौष्टिकता के कारण भी खास माने जाते हैं।
काला चावल और तुलसी चावल में समानता
काला चावल और तुलसी चावल में मुख्य समानता उनका काला रंग है, जिससे इन्हें तुलसी भात कहा जाता है। इसका नाम काले रंग की तुलसी के साथ तुलना के कारण पड़ा है। हालांकि, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह स्पष्ट नहीं है कि ये दोनों एक ही प्रजाति के हैं या नहीं। दोनों चावलों की खेती शिराला तालुका में की जाती है, जहां इन्हें पारंपरिक तरीके से संरक्षित किया गया है।
किसान तुलसी चावल को दे रहे प्राथमिकता
शिराला तालुका के किसान तुलसी चावल की खेती को प्राथमिकता दे रहे हैं क्योंकि यह फसल खरपतवार नियंत्रण में सहायक होती है। तुलसी चावल का रंग काला होने के कारण इसे आसानी से पहचाना जा सकता है। इसका तना भी काले रंग का होता है और इसकी ऊंचाई 3-4 फीट तक पहुंचती है। तुलसी चावल को पकने में लगभग तीन से साढ़े तीन महीने का समय लगता है, जो इसे खेती के लिए उपयुक्त बनाता है।
तालुका के किसान पारंपरिक तरीके से कर रहे खेती
Maharashtra: तालुका के कुछ किसान अब भी पारंपरिक बीजों को संरक्षित करके अपनी खेती में उपयोग कर रहे हैं, हालांकि तुलसी चावल के बीज बाजार में उपलब्ध नहीं हैं। यह चावल स्वादिष्ट और पौष्टिक माना जाता है, और किसान इसका उत्पादन घर पर ही करते हैं, जिससे इसका पारंपरिक अस्तित्व बरकरार रहता है। पारंपरिक विधियों से की जा रही खेती ने इस चावल को विशेष बना दिया है, जो न केवल किसानों को आर्थिक लाभ देती है बल्कि पर्यावरणीय संतुलन भी बनाए रखती है।
खरपतवार नियंत्रण में तुलसी चावल की भूमिका
तुलसी चावल की खेती से किसानों को खरपतवार नियंत्रण में भी मदद मिलती है। इस चावल की उगाई से न केवल भूमि की उर्वरता बनी रहती है बल्कि फसलों के बीच में खरपतवार कम होता है, जिससे की खेती अधिक सुदृढ़ और उत्पादक बनती है। इससे किसानों को अधिक लाभ होता है और उनकी मेहनत रंग लाती है।
किसानों को मिलने वाले लाभ
तुलसी चावल की खेती से किसानों को कई प्रकार के लाभ होते हैं। यह चावल न केवल खेती के लिए उपयुक्त है, बल्कि इसके स्वाद और पौष्टिकता के कारण बाजार में इसकी मांग भी अधिक है। पारंपरिक तरीकों से खेती करने वाले किसान इसे विशेष मानते हैं और इसे अपने घर पर ही उगाकर बेचते हैं, जिससे उन्हें बेहतर मूल्य मिलता है। इसके अलावा, खरपतवार नियंत्रण से फसलों की गुणवत्ता में भी सुधार होता है।