उत्तर प्रदेश की नई सोशल मीडिया पॉलिसी: सरकार की नीतियों का प्रचार या सजा का सामना?

उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में एक नई सोशल मीडिया पॉलिसी की घोषणा की है, जो न केवल राज्य में डिजिटल मीडिया पर नियंत्रण को बढ़ाएगी, बल्कि सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स और यूजर्स पर भी सीधा प्रभाव डालेगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कैबिनेट द्वारा मंजूर की गई इस पॉलिसी के अनुसार, सोशल मीडिया पर सरकार की योजनाओं और उपलब्धियों का प्रचार करने वाले यूजर्स को प्रोत्साहन के रूप में 8 लाख रुपये तक की आर्थिक सहायता दी जाएगी। इसके विपरीत, देशविरोधी या आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करने वाले यूजर्स को कानूनी कार्रवाई और सजा का सामना करना पड़ सकता है।

पॉलिसी के प्रमुख प्रावधान

इस नीति के तहत, उत्तर प्रदेश सरकार ने दो मुख्य प्रावधान रखे हैं:

राष्ट्रविरोधी गतिविधियों पर कार्रवाई: सोशल मीडिया पर देशविरोधी गतिविधियों में लिप्त पाए जाने पर यूजर्स के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इसका उद्देश्य राज्य में सामाजिक और राष्ट्रीय एकता को बनाए रखना है।

अभद्र और अश्लील सामग्री पर रोक: इस पॉलिसी के तहत, सोशल मीडिया पर अश्लील या अभद्र सामग्री पोस्ट करने वालों के खिलाफ आपराधिक मानहानि के मुकदमे दर्ज किए जा सकते हैं। यह कदम राज्य में नैतिकता और सामाजिक शिष्टाचार को बनाए रखने के उद्देश्य से उठाया गया है।

पॉलिसी का व्यापक प्रभाव

उत्तर प्रदेश डिजिटल मीडिया पॉलिसी-2024 के लागू होने के बाद, यह नीति ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम, और यूट्यूब जैसे सभी प्रमुख डिजिटल माध्यमों पर लागू होगी। इससे पहले, सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट के मामले में IT Act के तहत कार्रवाई की जाती थी, लेकिन यह नई पॉलिसी उत्तर प्रदेश को ऐसा पहला राज्य बना देगी, जहां सोशल मीडिया को रेगुलेट करने के लिए एक विशेष नीति लाई गई है।

राजनीतिक प्रतिक्रिया और आलोचना

उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने इस पॉलिसी पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि इस नीति का इस्तेमाल सरकार अपने प्रचार के लिए कर रही है, जिसमें सरकार के पक्ष में काम करने वालों को आर्थिक प्रोत्साहन दिया जाएगा, जबकि सरकार के खिलाफ बोलने वालों को सजा दी जाएगी। कांग्रेस का आरोप है कि यह पॉलिसी सरकार के डिजिटल मीडिया पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।

नई नीति पर बहस

योगी सरकार की नई डिजिटल नीति ने सोशल मीडिया को नियंत्रित करने की आवश्यकता पर एक नई बहस छेड़ दी है। आलोचकों का कहना है कि यह पॉलिसी राज्य में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित कर सकती है, जबकि समर्थकों का मानना है कि यह सोशल मीडिया पर फैलने वाली फेक न्यूज और देशविरोधी सामग्री पर अंकुश लगाने के लिए आवश्यक कदम है।

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