Why Shiva Is Offered Water: जानिए शिव को जल चढ़ाने की परंपरा का समुद्र मंथन से संबंध और कैसे यह महाकुंभ मेले की पवित्रता से जुड़ी है।
Why Shiva Is Offered Water: समुद्र मंथन और महाकुंभ का संबंध
हिंदू पौराणिक कथाओं में शिव को जल चढ़ाने की परंपरा का गहरा महत्व है, जिसका संबंध समुद्र मंथन की अद्भुत कथा से है। यही कथा महाकुंभ मेले के आधार को भी परिभाषित करती है, जिसे प्रयागराज में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर मनाया जाता है।
समुद्र मंथन की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवताओं और असुरों ने अमृत (अमरता का अमृत) प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया। मंदराचल पर्वत को मंथन-दंड और वासुकी नाग को रस्सी बनाया गया। इस प्रक्रिया को स्थिर रखने के लिए भगवान विष्णु ने कच्छप अवतार धारण कर पर्वत को अपनी पीठ पर सहारा दिया।
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मंथन के दौरान कई रत्न और धन प्राप्त हुए, लेकिन सबसे पहले हलाहल नामक विष निकला। यह विष इतना घातक था कि इससे सृष्टि का विनाश हो सकता था। देवता और असुर, दोनों इसे संभालने में असमर्थ थे।
शिव ने विष क्यों पिया?
भगवान शिव ने सृष्टि की रक्षा के लिए इस विष को ग्रहण किया, लेकिन उसे अपने कंठ में ही रोक लिया ताकि इसका प्रभाव उनके शरीर पर न पड़े। विष की जलन से उनका कंठ नीला पड़ गया, और इस कारण उन्हें नीलकंठ के नाम से जाना जाने लगा।
देवताओं ने विष की तीव्रता को शांत करने के लिए भगवान शिव का जल से अभिषेक किया। यही परंपरा आज भी शिवलिंग पर जल चढ़ाने के रूप में जारी है। इसके अलावा, दूध, दही, घी, धतूरा और भांग जैसे शीतल पदार्थ भी चढ़ाए जाते हैं।
महाकुंभ से संबंध
महाकुंभ मेला, जो हर 12 वर्ष में आयोजित होता है, समुद्र मंथन के दौरान अमृत प्राप्ति की पौराणिक कथा से जुड़ा है। मान्यता है कि देवताओं और असुरों के बीच हुए संघर्ष में अमृत की कुछ बूंदें प्रयागराज में गिरी थीं, जिससे यह स्थान पवित्र बन गया। संगम में स्नान करना आत्मा को शुद्ध करता है और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग खोलता है।
समुद्र मंथन से प्राप्त रत्न
समुद्र मंथन से 14 अद्भुत चीजें प्राप्त हुईं, जिनमें हलाहल विष, कामधेनु गाय, कल्पवृक्ष, लक्ष्मी, वारुणी, और धन्वंतरि प्रमुख हैं। इनमें अमृत सबसे महत्वपूर्ण था, जो महाकुंभ मेले की कथा का आधार बना।