Rajasthan के बारां जिले के आदिवासी क्षेत्र शाहाबाद में कुपोषण की गंभीर समस्या लंबे समय से बनी हुई है। सरकार की ओर से कुपोषण से निपटने के लिए लाखों-करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, और एमटीसी केंद्र, आंगनबाड़ी केंद्र, माँ बाड़ी केंद्र सहित दर्जनों एनजीओ इस दिशा में काम कर रही हैं। इसके बावजूद, सहरिया क्षेत्र में कुपोषण से प्रभावित बच्चों की स्थिति भयावह होती जा रही है।
सहरिया आदिवासी क्षेत्र के समरानिया की बस्ती में ढाई वर्षीय कार्तिक सहरिया, जो कुपोषण का शिकार है, अपने जीवन की अंतिम सांसें गिनता हुआ नजर आ रहा है। उसका शरीर हड्डियों का ढांचा बन चुका है, और यह दृश्य क्षेत्र में संचालित जनकल्याणकारी योजनाओं की असफलता को साफ दिखाता है।
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Rajasthan: कार्तिक के पिता, शनीराम सहरिया, बताते हैं कि उन्होंने अपने बच्चे का इलाज करवाने के लिए उसे दो बार केलवाड़ा अस्पताल ले गए थे। लेकिन अस्पताल की व्यवस्थाएं इतनी खराब थीं कि उन्हें सिर्फ दवाएं देकर लौटा दिया गया, और बताया गया कि बच्चे में खून की कमी नहीं है। इसके बाद, वे अपने बीमार बच्चे को लेकर वापस घर लौट आए, लेकिन उसकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ।
यह समस्या केवल कार्तिक तक सीमित नहीं है। जंगलों में बसे सहरिया समुदाय के कई बच्चे कुपोषण के शिकार हैं, लेकिन उनकी देखभाल और इलाज के लिए कोई जिम्मेदार कर्मचारी नजर नहीं आता। जब समरानिया जैसे कस्बे में कुपोषण का इतना गंभीर हाल है, तो सहरिया इलाके के दूर-दराज क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों की स्थिति कितनी भयावह हो सकती है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।
Rajasthan: शनीराम की कहानी उन हजारों आदिवासी परिवारों की कहानी है, जो अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन उन्हें सरकारी योजनाओं का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। सवाल उठता है कि आखिर कब तक ये बच्चे कुपोषण की चपेट में रहेंगे और कब इन योजनाओं का असली लाभ इन्हें मिल पाएगा? सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है ताकि इन बच्चों का जीवन बचाया जा सके और उन्हें बेहतर भविष्य मिल सके।
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