गौरेला, पेंड्रा, मरवाही: Baiga क्षेत्र में विकास की किरण अभी तक नहीं पहुंची है। यहां के बैगा आदिवासी गड्ढों का दूषित पानी पीने को विवश हैं। हैंड पंप से लाल पानी आ रहा है और बिगड़े हुए हैंड पंप का भी सुधार नहीं किया गया है। बैगा आदिवासियों को पीने के पानी के लिए 2 किलोमीटर आना-जाना पड़ता है। विकास के नाम पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च होते हैं, पर सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। जिम्मेदार अधिकारियों ने बैगा आदिवासियों की ओर से मुंह फेर लिया है, और बैगा आदिवासी भगवान भरोसे जीवन यापन कर रहे हैं। कई बैगा आदिवासियों के शरीर में पीलिया के लक्षण दिखाई दे रहे हैं।
गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले में बैगा आदिवासियों का बुरा हाल है। गोरेला जनपद के ठाड़ पथरा, आमानाला, दुर्गाधारा क्षेत्र में रहने वाले बैगा आदिवासी शुद्ध पानी के लिए तरस गए हैं। इनकी स्थिति ऐसी है जैसे पाषाण युग में जीवन जी रहे हों। न पहुंच मार्ग है, न पक्की सड़क, न ही शुद्ध पानी। अमरकंटक की तराई में बसे बैगा आदिवासी मैकल पहाड़ से बहकर आने वाले पहाड़ी नाले के बगल में छोटा सा गड्ढा खोदकर वर्षों से उसका पानी पीकर जीवन यापन करने को मजबूर हैं। जिन गड्ढों से बैगा आदिवासी पानी पीते हैं, उनमें पेड़ों से गिरे हुए पत्ते सड़ रहे हैं और बगल में काई जमी हुई है, जिससे बीमारी होने का अंदेशा बना हुआ है। फिर भी जीवन चलाने के लिए इसी पानी को कपड़े से छान कर बैगा आदिवासी पीते आ रहे हैं।
गांव में हैंड पंप भी हैं, पर एक बिगड़ा हुआ है और एक से लाल पानी आता है, जो पीने योग्य नहीं है। इसलिए मजबूरी में बैगा आदिवासी गड्ढों का पानी पीने को विवश हैं। बरसात के दिनों में जब नाले में बाढ़ आ जाती है, तब बाढ़ कम होने के बाद बगल में गड्ढा खोदकर उसी पानी को पीते हैं। खराब पानी पीने से होने वाली प्रमुख बीमारियों में से एक पीलिया का लक्षण कई बैगा आदिवासियों में देखने को मिला है। बैगा आदिवासियों को भी पता है कि पीने के पानी में गंदगी है, पर वर्षों से यही पीते आ रहे हैं।
वहीं, सड़क की स्थिति की बात करें तो सड़क जैसी कोई बात नजर नहीं आती। मिट्टी की सड़क में बरसात के पानी से सड़क के बीचों-बीच 1 से 2 फीट गहरे कटाव हो गए हैं, जिससे चलना कठिन हो जाता है। ग्रामीणों के अनुसार, बरसात के दिनों में तो हालत और भी बदतर हो जाती है। पर कभी कोई अधिकारी आता नहीं और अगर आता भी है तो व्यवस्था में कोई सुधार नहीं होता।
अत्यंत पिछड़े आदिवासी क्षेत्रों में शहरी क्षेत्र की तरह विकास पहुंचाने और उन्हें मुख्य धारा से जोड़ने के लिए सरकार ने मध्य प्रदेश शासन काल में ही आदिवासी विकास विभाग का गठन कर पेंड्रा में परियोजना प्रशासक का कार्यालय स्थापित कराया था। छत्तीसगढ़ बनने के बाद भी यह कार्यालय लगातार काम कर रहा है। इस कार्यालय से सिर्फ आदिवासियों के विकास के लिए योजनाएं बनाने और क्रियान्वयन का काम ही कराया जाता है, पर यह विभाग अब सिर्फ भ्रष्टाचार के आरोपों में ही घिर कर रह गया है।
हमने आदिवासी विकास विभाग के परियोजना प्रशासक और सहायक आयुक्त से बात करने की कोशिश की, पर बात नहीं हो सकी। वहीं, गौरेला जनपद पंचायत का कार्यक्षेत्र होने के कारण जनपद पंचायत गौरेला के मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने पानी की व्यवस्था के लिए केंद्र सरकार द्वारा चल रही जल जीवन मिशन से पानी पहुंचाने की बात कही, पर इस योजना के कोई निशान वहां नजर नहीं आए। जब हमने कुआं और हैंड पंप से पानी पहुंचाने और सड़क मार्ग से जोड़ने की बात की तो साहब ने कहा कि यह योजना में है और काम होगा, पर कब तक होगा यह नहीं बता सकते। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिम्मेदार कितने जिम्मेदार हैं।
बैगा और आदिवासी विकास के नाम पर वर्षों से करोड़ों रुपए की योजनाएं बनती आ रही हैं, पर इसका फायदा इन बैगा आदिवासियों को कितना मिला है, यह तस्वीरें बयां कर रही हैं। जिम्मेदार अधिकारियों को इतनी फुर्सत कहां कि वे एसी कमरों से निकलकर इन बैगा आदिवासियों के दुख-दर्द और तकलीफ को समझ सकें।