Udayabhaan करवरिया (Real Life Baahubali) की रिहाई से पूर्वांचल के राजनीतिक समीकरण बदल गए

Prayagraj: जिन लोगों ने मिर्जापुर सीरीज देखी है, उन्हें याद होगा कि कैसे होम मिनिस्टर साजिश करके बाहुबली गुड्डू पंडित को बाहर निकालते हैं। अपने राजनीतिक फायदे के लिए बाहुबलियों को जेल भिजवाना और फिर बाहर निकालना, नेताओं के लिए ‘पार्ट ऑफ द डर्टी गेम’ जैसा होता है। इसी कड़ी में अब पूर्वांचल के बड़े बाहुबली उदयभान करवरिया की रिहाई ने पूरे क्षेत्र के राजनीतिक समीकरणों को हिला कर रख दिया है।

पूर्वांचल में करवरिया बंधुओं का काफी प्रभाव रहा है और उदयभान करवरिया को कभी मुरली मनोहर जोशी का दाहिना हाथ माना जाता था। 1996 में विधायक जवाहर पंडित की हत्या के मामले में उदयभान को पांच साल पहले उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। जेल में नौ साल बिताने के बाद, सरकार ने अच्छे आचरण का हवाला देते हुए उन्हें रिहा करने का निर्णय लिया, जिसे राज्यपाल ने मंजूरी दी। उनकी रिहाई के बाद, प्रयागराज क्षेत्र में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है और खासकर बीजेपी की हालिया हार के बाद विभिन्न अटकलें लगाई जा रही हैं।

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क्या उदयभान की रिहाई केशव मौर्य के खिलाफ एक रणनीतिक चाल है?

वर्तमान में प्रयागराज की राजनीतिक स्थिति उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इर्द-गिर्द घूमती है। मौर्य और करवरिया के बीच कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है, लेकिन उदयभान की रिहाई मौर्य की पकड़ के लिए एक चुनौती प्रस्तुत करती है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एक शक्तिशाली शख्स उदयभान को मौर्य के प्रभाव को सीमित करने के लिए रणनीतिक रूप से स्थापित कर रहा है।

बीजेपी को उदयभान की रिहाई से लाभ की उम्मीद

उदयभान करवरिया, जो बीजेपी के बैनर तले बारा विधानसभा सीट से दो बार विधायक रह चुके हैं, को प्रयागराज मंडल के सबसे महत्वपूर्ण ब्राह्मण चेहरे के रूप में पहचाना जाता है। उनके संगठनात्मक कौशल को वरिष्ठ बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी ने भी माना है। जेल जाने से पहले, उदयभान बीजेपी के संगठनात्मक गतिविधियों को सीधे या परोक्ष रूप से संभालते थे।

हाल ही में लोकसभा चुनाव में मिली हार, कमजोर होता संगठन और ब्राह्मण वोटरों के असंतोष के कारण, बीजेपी उदयभान करवरिया से पुनरुत्थान की उम्मीद कर रही है। उदयभान एक formidable opponent के रूप में जाने जाते हैं और अब, रेवती रमण सिंह के बेटे उज्ज्वल रमण सिंह के प्रयागराज से सांसद बनने के बाद, बीजेपी 2027 के चुनाव के लिए अपने समीकरण को सुधारने की योजना बना रही है।

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क्या उदयभान बीजेपी के कमजोर संगठन को मजबूत कर पाएंगे?

रिहाई के बावजूद, उदयभान चुनाव नहीं लड़ सकते, जिससे उनकी भूमिका केवल संगठनात्मक गतिविधियों तक सीमित हो जाती है। बीजेपी उम्मीद करती है कि उदयभान संगठन में वापस आएंगे और 2027 की लड़ाई के लिए जमीनी कार्यकर्ताओं को तैयार करेंगे। फिलहाल प्रयागराज बीजेपी संगठन खंडित है, और सभी नेताओं ने पार्टी हाईकमान से इसकी शिकायत की है।

क्या उदयभान बीजेपी के विभाजित गुटों को एकजुट कर पाएंगे?

चुनाव के बाद की समीक्षाओं से पता चला कि प्रयागराज में बीजेपी संगठन कई गुटों में बंट चुका है, विशेष रूप से ब्राह्मण नेताओं ने कई गुट बना लिए हैं। इन गुटों को एकजुट करने के लिए उदयभान करवरिया एक मजबूत विकल्प माने जा रहे हैं। उदयभान करवरिया की ब्राह्मण वोटरों में पकड़ है और साथ ही जेल जाने के कारण एक सहानुभूति भी।

करवरिया का प्रभाव कौशांबी तक फैला है

उदयभान करवरिया, जो प्रयागराज की राजनीति के अनुभवी खिलाड़ी माने जाते हैं, की जड़ें कौशांबी से भी जुड़ी हुई हैं। कौशांबी में भी उनकी पकड़ मजबूत है, जहां बीजेपी ने विधानसभा की तीनों सीटें और लोकसभा की सीट खो दी थी। बीजेपी उदयभान के जरिए कौशांबी के समीकरणों को सुधारने की योजना बना रही है।

उदयभान करवरिया अपने बेटे सक्षम करवरिया को राजनीति में लॉन्च कर सकते हैं?

उदयभान की जेल में होने के दौरान, उनकी पत्नी नीलम करवरिया ने उनकी राजनीतिक विरासत को संभाला, और 2017 में मेजा विधानसभा सीट पर बीजेपी के टिकट पर जीत हासिल की। हालांकि, 2022 का चुनाव नीलम करवरिया हार गईं और तब से बीमार चल रही हैं। उदयभान अब अपने बेटे सक्षम करवरिया को राजनीति में लॉन्च कर सकते हैं।

करवरिया परिवार की राजनीतिक विरासत

उदयभान करवरिया का परिवार राजनीतिक रूप से काफी प्रभावशाली है। उदयभान खुद दो बार बारा से विधायक रहे, जबकि उनके बड़े भाई कपिलमुनि करवरिया 2009 में प्रयागराज से सांसद बने थे। एक और भाई, सूरजभान करवरिया, एमएलसी रह चुके हैं। उदयभान के कई रिश्तेदार भी राजनीति में सक्रिय हैं।

उदयभान करवरिया को किस मामले में उम्रकैद की सजा मिली थी?

1996 में झूंसी से सपा विधायक जवाहर यादव उर्फ जवाहर पंडित की हत्या कर दी गई थी। जवाहर के साथ ही उनके ड्राइवर और एक राहगीर की सिविल लाइंस क्षेत्र में AK-47 से गोली मारकर हत्या की गई थी। इस तिहरे हत्याकांड का आरोप उदयभान, उनके भाईयों कपिलमुनि और सूरजभान व रिश्तेदार रामचंद्र पर लगा था।

हत्याकांड के छह साल बाद उदयभान विधायक बन गए और अपने सत्ता के रसूख की वजह से जेल जाने से बच गए, लेकिन 2012 में जैसे ही यूपी में सपा की सरकार आई तो उदयभान करवरिया पर चाबुक चला। 4 नवंबर 2019 को कोर्ट ने सभी आरोपियों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुना दी। दोषी ठहराए जाने के पांच साल बाद ही उदयभान जेल से बाहर आ गए, वजह बनी जेल में आचरण का ठीक होना।

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