Ballabhgarh विधानसभा के सरकारी स्कूलों की खस्ता हालत ने शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जहां एक ओर प्रदेश सरकार स्कूलों में दाखिले बढ़ाने की दिशा में प्रयासरत है, वहीं दूसरी ओर इन सरकारी स्कूलों की जर्जर इमारतें और अव्यवस्थाएं चिंता का विषय बन गई हैं।
आदर्श कॉलोनी में स्थित बल्लभगढ़ के दोनों सरकारी स्कूलों की हालत देखकर कोई भी सहजता से अंदाजा लगा सकता है कि छात्र कितने भयावह स्थिति में पढ़ाई कर रहे हैं। इनमें से एक स्कूल को मॉडल संस्कृति स्कूल का दर्जा प्राप्त है, लेकिन इसके बावजूद इमारत की हालत बेहद खराब है। स्कूल में पांचवी कक्षा तक की पढ़ाई होती है, लेकिन इन दोनों स्कूलों में कमरों की संख्या पर्याप्त नहीं है। दोनों स्कूलों में छात्रों की संख्या तो पांचवीं कक्षा के अनुसार है, लेकिन कक्षाएं मात्र तीन ही हैं। इस स्थिति में शिक्षकों को एक ही कमरे में दो कक्षाओं को एक साथ पढ़ाने की मजबूरी झेलनी पड़ती है, जिससे पढ़ाई की गुणवत्ता प्रभावित होती है और बच्चों का ध्यान भी भटकता है।
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स्कूल की एक शिक्षिका ने बताया कि एक ही कमरे में तीसरी और चौथी कक्षा के बच्चों को पढ़ाना एक चुनौती है। गर्मी और बारिश के मौसम में हालात और भी खराब हो जाते हैं, जब बच्चों को भयंकर गर्मी या बारिश के बीच पढ़ाई करनी पड़ती है। इसके अलावा, स्कूल में सफाई कर्मचारी और चौकीदार की अनुपस्थिति के कारण शरारती तत्व स्कूल में घुसकर चोरी की घटनाएं कर रहे हैं। शौचालय की टूटी हुई पाइपें भी चुराई जा चुकी हैं, जिससे शौचालय में पानी की समस्या बनी रहती है।
मॉडल संस्कृति स्कूल की प्रिंसिपल ने बताया कि शिक्षा विभाग को कई बार सूचित किया गया है, लेकिन अभी तक कोई ठोस समाधान नहीं किया गया है। स्कूल की सीलन भरी दीवारों और अंधेरे कमरों ने भी छात्रों की पढ़ाई पर नकारात्मक प्रभाव डाला है।
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एक चौथी कक्षा के छात्र ने बताया कि बेंच की ऊंचाई उनके आकार से मेल नहीं खाती, जिससे उन्हें खड़े होकर पढ़ाई करनी पड़ती है। इस समस्या का सामना केवल एक छात्र को ही नहीं, बल्कि पूरी कक्षा के बच्चों को करना पड़ रहा है। इसी तरह, शौचालय की पानी की कमी के कारण कई बार छात्राओं को पढ़ाई के बीच में घर जाकर शौच के लिए जाना पड़ता है।
सालों से जर्जर सरकारी इमारतों की गिरने की खबरें आती रही हैं और हर बार बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं। लेकिन उन वादों का पालन नहीं हो पाता और स्थिति वही रहती है। अब देखना होगा कि क्या स्थानीय प्रशासन और सरकार शिक्षा विभाग इस स्थिति को सुधारने के लिए वास्तविक प्रयास करेंगे या फिर यह मसला भी पुराने ढर्रे पर चलता रहेगा।
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