वह बहुत सभ्य था, उसने कभी किसी चीज की शिकायत नहीं की। और वह हमेशा सेना में शामिल होना चाहता था। हमने उसे बताया था कि सेना में जीवन कठिन होता है। उसने अपने पिता का जीवन भी देखा था, लेकिन फिर भी वह सेना में ही जाना चाहता था।
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ये शब्द हैं उस माँ के, जिसने अपना 27 वर्षीय जवान बेटे को जम्मू कश्मीर के डोडा में हुए आतंकी मुठभेड़ में खो दिया। नमस्कार, आप देख रहे हैं हिंदी स्टेट्स और मैं हूँ अमित।
5 जनवरी को सेना दिवस के अवसर पर जन्मे कैप्टन बृजेश थापा अपने तीन बहादुर साथी—नायक डी राजेश, सिपाही बृजेंद्र, और सिपाही अजय सिंह नरूका के साथ थे, जो डोडा में जैश-ए-मोहम्मद आतंकियों से लड़ते वक्त वीरगति को प्राप्त हुए। कैप्टन थापा अपने घर में दूसरी पीढ़ी के सेना अधिकारी थे, जिसने परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाया।
दार्जलिंग में अपने बेटे के पार्थिव शरीर को गर्व से सलामी देते हुए सेना से रिटायर्ड कर्नल भुवनेश थापा ने कहा, “मुझे अपने बेटे पर गर्व है, जिसने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।”
इस दुख की घड़ी में अपने आँसुओं को रोकते हुए कैप्टन थापा के पिता ने कहा, “बचपन में ही उसने सेना में जाने का सपना देखा था, जिसे उसने साकार कर दिखाया। वह अक्सर मेरी आर्मी की ड्रेस पहना करता था। उसने पहली बार में ही परीक्षा पास की और सेना में शामिल हुआ। मुझे गर्व है कि मेरे बेटे ने देश की रक्षा के लिए कुछ किया है। दुख की बात सिर्फ यह है कि हम अब उसे फिर कभी नहीं देख पाएंगे।”
कैप्टन थापा की माँ नीलीमा ने कहा कि अंतिम बार मार्च में उनका बेटा घर आया था और इस जुलाई वो फिर घर आने वाला था। दुर्भाग्य देखिए, बेटा जुलाई में घर तो आया, लेकिन तिरंगे में लपेटे हुए, साथी जवानों के साथ अपनी शहादत की सलामी लेते हुए।
भावुक माँ ने कहा, “गर्व तो बहुत है, लेकिन वह अब हमसे दूर हो गया है।”
मुंबई से अपनी बीटेक खत्म करने के बाद, कैप्टन थापा अपने पहले ही प्रयास में 2019 में एसएससी के थ्रू सेना में शामिल हुए। शुरूआती दो साल कैप्टन थापा ने 145 एयर डिफेंस में और 10 नेशनल राइफल एक्स्ट्रा रेजीमेंट में अपनी सेवाएं दीं।
बीते 15 जुलाई को जम्मू-कश्मीर के डोडा में घने जंगलों में छीपे आतंकियों से लड़ते हुए कैप्टन थापा समेत तीन अन्य जवान शहीद हुए थे। इस ऑपरेशन को कैप्टन थापा लीड कर रहे थे।
2016 में नोटबंदी और 2019 में अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद मोदी सरकार ने दावा किया था कि घाटी से आतंकवाद का सफाया हो जाएगा, लेकिन यह दावे खोखले ही साबित हुए। पिछले करीब दो महीनों में जम्मू-कश्मीर में 9 आतंकी हमले हुए हैं, जिनमें 12 जवान शहीद हुए हैं, 13 जवान घायल हुए हैं, 10 लोग मारे गए हैं, और 50 से ज्यादा नागरिक घायल हुए हैं।
कैप्टन बृजेश थापा की शहादत ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि देश की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति देने वाले इन वीर सपूतों की कहानियाँ हमें गर्व से भर देती हैं, लेकिन उनके परिवारों के दर्द को भी बयाँ करती हैं।