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Hindi States > ट्रेंडिंग > आरक्षण कब तक मिलना चाहिए? जानिए सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले में क्या कहा गया
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आरक्षण कब तक मिलना चाहिए? जानिए सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले में क्या कहा गया

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Last updated: August 2, 2024 12:55 pm
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सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की पीठ ने अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग के कोटे में उप-वर्गीकरण की अनुमति देते हुए ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि SC/ST कैटेगरी के अंदर नई कैटेगरी बनाकर अति पिछड़ों को अलग कोटा दिया जा सकता है।

कोटे के अंदर कोटा: सरकार को क्या अधिकार है?

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को कोटे के अंदर कोटा बनाने की छूट दी है, पर इसके लिए ऐतिहासिक तथ्य और पर्याप्त आंकड़े होने चाहिए। सीजेआई चंद्रचूड़ और जस्टिस मनोज ने कहा कि संविधान का आर्टिकल 14 जातियों के उप-वर्गीकरण की अनुमति देता है। आर्टिकल 15 और 16 में ऐसा कुछ नहीं है जो राज्य सरकार को उप-वर्गीकरण करने से रोकता हो।

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आरक्षण की अवधि: एक पीढ़ी तक सीमित?

जस्टिस पंकज मित्तल ने कहा कि आरक्षण एक पीढ़ी तक सीमित होना चाहिए। अगर किसी SC/ST परिवार की पहली पीढ़ी आरक्षण का फायदा लेकर उन्नति कर चुकी है, तो दूसरी पीढ़ी को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। सरकार को यह देखना चाहिए कि आरक्षण के बाद दूसरी पीढ़ी सामान्य श्रेणी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है या नहीं।

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क्रीमी लेयर: SC/ST वर्ग में लागू?

जस्टिस विक्रमनाथ ने कहा कि ओबीसी पर लागू क्रीमी लेयर का सिद्धांत SC/ST पर भी लागू होता है। सरकार को SC/ST समुदाय में क्रीमी लेयर की पहचान सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने चाहिए। वर्तमान नियम के अनुसार, अगर किसी परिवार की सालाना आय 8 लाख रुपए से ज्यादा है, तो उसे क्रीमी लेयर में रखा जाएगा।

वर्गीकरण की आवश्यकता

जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा का कहना है कि SC/ST वर्ग में अत्यधिक पिछड़े समुदायों को समान अवसर प्रदान करने के लिए उनका उप-वर्गीकरण जरूरी है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि SC/ST के बीच क्रीमी लेयर की पहचान संवैधानिक अनिवार्यता बने।

असहमति वाला निर्णय: जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की राय

असहमति वाले 86 पेज के फैसले में जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने कहा कि 3 जजों की बेंच ने बिना कोई कारण बताए इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेजा, जिससे वह सहमत नहीं हैं। आर्टिकल 341 के मुताबिक, अधिसूचित SC/ST की सूची में राज्य सरकार द्वारा बदलाव नहीं किया जा सकता। उप-वर्गीकरण इस सूची से छेड़छाड़ करने जैसा होगा।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से राज्य सरकारों को अनुसूचित जाति और जनजाति के कोटे में उप-वर्गीकरण की अनुमति मिल गई है, जिससे अति पिछड़े समुदायों को अधिक अवसर मिल सकेंगे।

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