Jaipur अच्छी बारिश के बाद आमेर का मावठा और सागर झील पानी से लबालब हो गए हैं, जिससे इस ऐतिहासिक क्षेत्र की खूबसूरती और भी बढ़ गई है। रजवाड़ों के जमाने की यह पारम्परिक जल संचयन प्रणाली एक बार फिर अपनी महत्ता साबित कर रही है। आज के इंजीनियरों को इस ड्रेनेज सिस्टम से सीख लेने की जरूरत है, जो बिना किसी आधुनिक तकनीक के वर्षों से कारगर साबित हो रहा है।
पारम्परिक जल स्त्रोत फिर से भरपूर
राजा रजवाड़ों के जमाने में बनाई गई पारम्परिक जल संचयन प्रणाली ने एक बार फिर अपना जादू दिखाया है। मावठा और सागर झीलें पानी से लबालब हो गई हैं, जिससे आमेर की खूबसूरती में चार चांद लग गए हैं। इसके अलावा, इस पानी से आमेर और आसपास के इलाकों के कुएं, तालाब, कुंड, और बावड़ियां भी रिचार्ज हो गई हैं, जिससे अगले साल जलसंकट की स्थिति नहीं पैदा होगी।
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पानी के संचय के लिए बने थे टांके
आमेर की भूमि न केवल बहादुरी और पराक्रम का परिचायक है, बल्कि यहां के जल संचयन प्रणाली की भी लोग कायल हैं। राजा रजवाड़ों के समय मावठा और सागर झील को इस तरह से बनाया गया था कि पहाड़ों से बहकर आने वाला बारिश का पानी इन जलाशयों में जमा हो सके। आमेर महल में बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए विशेष टांके बनाए गए थे, जो आज भी पूरी तरह से कार्यशील हैं और बारिश का पानी इन टांकों से होकर मावठा और सागर झील में जमा होता है।
आधुनिक समय में सीखने की जरूरत
राजा महाराजा इन टांकों का शुद्ध पानी सालभर पीते थे और पहाड़ों से बहते पानी को शुद्ध माना करते थे। आज के समय में, जहां भूजल स्तर लगातार गिर रहा है और ड्रेनेज सिस्टम पूरी तरह से खत्म हो चुका है, ऐसे में आमेर की इस पारम्परिक जल संचयन प्रणाली से हमें पानी बचाने की सीख जरूर लेनी चाहिए।