Jammu-Kashmir Elections: जम्मू-कश्मीर में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के लिए विधानसभा चुनाव एक बड़ी परीक्षा साबित हो रहे हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) और कांग्रेस के बीच गठबंधन के बाद से पीडीपी की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। दोनों पार्टियों ने जम्मू-कश्मीर के 90 विधानसभा क्षेत्रों में एक साथ चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है, जबकि पीडीपी घाटी में अकेले चुनाव लड़ रही है।
Jammu-Kashmir Elections: पीडीपी के अंदर मचा विद्रोह
अब तक पीडीपी ने विधानसभा चुनावों के लिए 31 निर्वाचन क्षेत्रों के प्रभारियों की घोषणा की है, लेकिन इन घोषणाओं के बाद पार्टी में एक बड़ा विद्रोह देखने को मिला है। कई प्रमुख नेताओं ने नाराज होकर पार्टी छोड़ दी है, जिनमें पूर्व विधायक एजाज मीर, डीडीसी सदस्य और प्रवक्ता डॉ. हरबख्श सिंह, और पीडीपी के मुख्य प्रवक्ता सुहैल बुखारी शामिल हैं।
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नेकां और कांग्रेस की गठबंधन रणनीति
नेकां और कांग्रेस के बीच गठबंधन की वजह से पीडीपी के लिए चुनावी परिदृश्य और जटिल हो गया है। नेकां-कांग्रेस गठबंधन घाटी में पीडीपी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, अवामी इत्तेहाद पार्टी और कुछ निर्दलीय उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ेगा। नेकां के नेताओं ने पीडीपी को गठबंधन में शामिल करने की संभावना को खारिज कर दिया है, यह कहते हुए कि पीडीपी ने पहले लोकसभा चुनावों में उनके खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे।
Jammu-Kashmir Elections: पीडीपी की विफलता और भीतरू विद्रोह
2014 के विधानसभा चुनावों में पीडीपी का भाजपा के साथ गठबंधन और नेताओं की वफादारी को महत्व न देने के कारण पार्टी में नाराजगी बढ़ी है। पार्टी के 12-15 पूर्व विधायकों और नेताओं के पार्टी छोड़ने से और हाल के लोकसभा चुनाव में एक भी सीट न जीतने से पीडीपी को बड़ा झटका लगा है। 2014 में पीडीपी ने पुंछ और राजोरी से 28 सीटें जीती थीं और भाजपा के साथ सरकार बनाई थी।
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चुनावी चुनौतियां और भविष्य की दिशा
पार्टी के लिए चुनौतियों में शामिल हैं: गठबंधन के लिए किसी भी पार्टी का साथ न मिलना, 12 से 15 पूर्व विधायकों और नेताओं का पार्टी छोड़ना, और हाल के लोकसभा चुनाव में प्रदेश में एक भी सीट न जीतना। इन कठिनाइयों के बावजूद, पीडीपी अपने अस्तित्व को बनाए रखने और आगामी चुनावों में सफल होने के लिए रणनीति पर काम कर रही है।
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