राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने विवादित फोरेंसिक मेडिसिन पाठ्यक्रम को वापस ले लिया है, जिसमें समलैंगिकता और सोडोमी को यौन अपराध के रूप में वर्णित किया गया था। यह पाठ्यक्रम 2024 में जारी किया गया था और इसमें 2022 में किए गए प्रगतिशील परिवर्तनों को उलट दिया गया था। 2022 के पाठ्यक्रम को मद्रास उच्च न्यायालय की सिफारिशों के आधार पर एक विशेषज्ञ समिति द्वारा तैयार किया गया था, जिसमें समलैंगिकता और सोडोमी को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था और यौन शिक्षा में समावेशी दृष्टिकोण अपनाया गया था।
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हालांकि, 2024 के पाठ्यक्रम ने इन प्रगतिशील परिवर्तनों को वापस ले लिया और समलैंगिकता, सोडोमी जैसे विषयों को ‘अप्राकृतिक अपराधों’ के रूप में फिर से शामिल किया। इस कदम ने LGBTQ+ समुदाय और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के बीच व्यापक नाराजगी उत्पन्न की। समलैंगिकता और सोडोमी को अपराध बताने के साथ-साथ पाठ्यक्रम में कौमार्य और हाइमन पर जोर दिया गया था, जिसे पहले के पाठ्यक्रम में हटा दिया गया था।
ट्रांसजेंडर हेल्थ एसोसिएशन सहित कई अधिकार समूहों ने इन परिवर्तनों की आलोचना की। उन्होंने तर्क दिया कि यह पाठ्यक्रम न केवल हाशिए पर खड़ी समुदायों को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि भारत की वैश्विक छवि को भी धूमिल करेगा। इसके साथ ही, नए पाठ्यक्रम से दिव्यांगता और LGBTQ+ संबंधित महत्वपूर्ण विषयों को भी हटा दिया गया, जिसने मेडिकल पेशेवरों को समावेशी स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने की उनकी क्षमता को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया।
आखिरकार, व्यापक आलोचना के बाद NMC ने इस पाठ्यक्रम को वापस लेने का निर्णय लिया है और वादा किया है कि नया पाठ्यक्रम आधुनिक चिकित्सा प्रथाओं और समावेशी दृष्टिकोण के अनुरूप होगा। इस कदम को प्रगतिशील चिकित्सा शिक्षा के समर्थकों की एक बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है।