Supreme Court ने सोमवार (23 सितंबर) को मद्रास हाई कोर्ट के उस फैसले को निरस्त कर दिया, जिसमें कहा गया था कि बिना प्रसारित करने की मंशा के बाल अश्लील सामग्री का केवल संग्रहण अपराध नहीं है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी सामग्री का संग्रहण, बिना हटाए या रिपोर्ट किए, प्रसारण की मंशा को दर्शाता है और यह POCSO अधिनियम के तहत अपराध है।
प्रक्रिया में गलती और सुप्रीम कोर्ट की राय
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने हाई कोर्ट के फैसले को “गंभीर त्रुटि” बताते हुए कहा कि अपराधी द्वारा सामग्री को न हटाने या रिपोर्ट न करने से यह स्थापित होता है कि उसका मानसिक उद्देश्य प्रसारण से जुड़ा हुआ था। कोर्ट ने इस आधार पर आपराधिक मुकदमे की प्रक्रिया को फिर से बहाल कर दिया।
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POCSO अधिनियम की धारा 15 के तहत अपराध
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि POCSO अधिनियम की धारा 15 में तीन अलग-अलग अपराधों का प्रावधान है, जिनमें बच्चों से संबंधित अश्लील सामग्री का संग्रहण या कब्जा करना शामिल है, भले ही उसे प्रसारित करने की मंशा हो या न हो। इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि इस धारा के तहत मंशा (mens-rea) को सामग्री के संग्रहण और उसकी परिस्थितियों से निर्धारित किया जा सकता है।
धारा 15(2) और 15(3) के संदर्भ में
धारा 15(2) के तहत सामग्री का वास्तविक प्रसारण, प्रचार, प्रदर्शन या वितरण एक अपराध है। इसके अलावा, अगर सामग्री को प्रसारित करने की कोई तैयारी या प्रबंध किया गया हो, तो भी यह अपराध की श्रेणी में आता है। वहीं, धारा 15(3) के तहत यदि सामग्री का संग्रहण वाणिज्यिक उद्देश्य से किया गया हो, तो यह भी एक गंभीर अपराध माना जाता है।
सुप्रीम कोर्ट की सिफारिशें
सुप्रीम कोर्ट ने संसद से अनुरोध किया कि “बाल अश्लीलता” शब्द को “बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री” से बदलने के लिए एक अध्यादेश लाया जाए। कोर्ट ने कहा कि अदालतों को “बाल अश्लीलता” शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
मामले की पृष्ठभूमि
इस मामले में आरोपी ने अपने मोबाइल में बाल अश्लील सामग्री डाउनलोड की थी, जिसके बाद पुलिस ने उसके खिलाफ मामला दर्ज किया था। फॉरेंसिक जांच में इस बात की पुष्टि हुई कि उसके मोबाइल में दो फाइलें बाल अश्लील सामग्री से जुड़ी थीं। हालांकि, आरोपी ने मद्रास हाई कोर्ट में आपराधिक कार्यवाही को निरस्त करने की याचिका दायर की थी, जिसे अब सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।
मद्रास हाई कोर्ट का निर्णय और तर्क
मद्रास हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि आरोपी ने सामग्री को केवल निजी देखने के लिए डाउनलोड किया था, न कि उसे प्रसारित करने के लिए। कोर्ट ने कहा था कि बाल अश्लील सामग्री डाउनलोड करना और देखना, बिना प्रसारित करने की मंशा के, आईटी अधिनियम की धारा 67-B के तहत अपराध नहीं है।
बाल अधिकार संगठनों की चिंता
“जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन” समूह ने इस फैसले पर आपत्ति जताई थी, यह तर्क देते हुए कि इससे बाल अश्लील सामग्री को सामान्य बनाने का खतरा पैदा हो सकता है और बच्चों की सुरक्षा को खतरा हो सकता है।