Marriage के बाद महिलाओं का सरनेम बदलने की परंपरा, क्या कहता है इतिहास और कानून

हाल ही में, 29 जुलाई को राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश नारायण सिंह ने जया बच्चन का नाम पुकारते हुए ‘श्रीमती जया अमिताभ बच्चन जी’ कहा। इसके बाद जया बच्चन का लहजा थोड़ा सख्त हो गया। उन्होंने सदन में खड़ी होकर कहा, ‘सिर्फ जया बच्चन बोलते तो काफी होता। आजकल ये नया तरीका चल पड़ा है कि महिलाएं अपने पति के नाम से जानी जा रही हैं। क्या उनकी खुद की कोई उपलब्धि नहीं है? कोई अस्तित्व नहीं है?’ इसके जवाब में उप सभापति ने कहा कि उन्होंने वही नाम पुकारा है जो संसद में दस्तावेज मौजूद है।

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नाम बदलने की परंपरा का इतिहास

शादी के बाद महिलाओं का सरनेम बदलने की परंपरा का संबंध पितृसत्तात्मक समाज से है। पुराने समय में, महिलाओं को उनके पति की संपत्ति माना जाता था और उनके सरनेम को बदलना इस बात का प्रतीक था कि वे अब अपने पिता के घर की बजाय अपने पति के घर की सदस्य हैं। यह परंपरा मुख्यतः पश्चिमी समाजों से आई है और धीरे-धीरे अन्य संस्कृतियों में भी फैल गई।

कानूनी स्थिति

भारतीय कानून के अनुसार, महिलाओं को शादी के बाद
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भारतीय कानून के अनुसार, महिलाओं को शादी के बाद अपना सरनेम बदलने के लिए बाध्य नहीं किया गया है। यह पूरी तरह से उनकी इच्छा पर निर्भर करता है। वे चाहे तो अपना मूल सरनेम रख सकती हैं, अपने पति का सरनेम अपना सकती हैं, या दोनों सरनेम जोड़ सकती हैं। हालांकि, कई महिलाएं सामाजिक दबाव या पारिवारिक परंपराओं के कारण अपने पति का सरनेम अपना लेती हैं।

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समाज की सोच

समाज में आज भी कई लोग मानते हैं कि शादी के बाद महिलाओं को अपने पति का सरनेम अपनाना चाहिए। इसके पीछे मुख्य तर्क यह दिया जाता है कि इससे परिवार में एकता और पहचान बनी रहती है। हालांकि, आधुनिक समय में कई महिलाएं इस परंपरा को चुनौती दे रही हैं और अपने मूल सरनेम को बनाए रख रही हैं।

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मनोरंजन जगत के उदाहरण

मनोरंजन जगत में भी इस परंपरा के विभिन्न उदाहरण देखने को मिलते हैं। करीना कपूर ने शादी के बाद ‘करीना कपूर खान’ नाम अपनाया, जबकि आलिया भट्ट ने अपना मूल सरनेम बरकरार रखा। प्रियंका चोपड़ा ने शादी के बाद ‘प्रियंका चोपड़ा जोनस’ नाम अपनाया लेकिन बाद में उन्होंने इसे ड्रॉप कर दिया।

निष्कर्ष

शादी के बाद महिलाओं का सरनेम बदलने की परंपरा पितृसत्तात्मक समाज की देन है। हालांकि, कानून महिलाओं को इसके लिए बाध्य नहीं करता है। यह पूरी तरह से उनकी इच्छा पर निर्भर करता है। समाज में धीरे-धीरे इस परंपरा को लेकर सोच बदल रही है और कई महिलाएं अपने मूल सरनेम को बनाए रख रही हैं।

इस प्रकार, महिलाओं का सरनेम बदलना या न बदलना उनकी व्यक्तिगत पसंद होनी चाहिए और समाज को इसे स्वीकार करना चाहिए।

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मनीष कुमार एक उभरते हुए पत्रकार हैं और हिंदी States में बतौर Sub-Editor कार्यरत हैं । उनकी रुचि राजनीती और क्राइम जैसे विषयों में हैं । उन्होंने अपनी पढ़ाई IMS Noida से की है।
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