क्या है Lateral Entry? जिस पर देश में मच रहा है हंगामा, जानें सबकुछ

कांग्रेस नेता Rahul Gandhi ने हाल ही में प्रधानमंत्री Narendra Modi के नेतृत्व वाली सरकार पर आरोप लगाया है कि वे Lateral Entry के जरिए बहुजनों का आरक्षण छीनने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने लेटरल एंट्री को दलित, ओबीसी और आदिवासी समाज पर हमला बताया है। यह बयान तब आया है जब संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने विभिन्न मंत्रालयों में 45 पदों पर लेटरल एंट्री से नियुक्तियों का विज्ञापन निकाला है। इस कदम के बाद से ही विपक्षी दलों ने सरकार की इस नीति पर कड़ा विरोध जताया है।

क्या है Lateral Entry ?

Lateral Entry का मतलब है कि प्राइवेट सेक्टर के अनुभवी लोगों को सीधे सरकारी पदों पर नियुक्त किया जाए। यह पद ज्वाइंट सेक्रेटरी, डायरेक्टर या डिप्टी सेक्रेटरी के होते हैं, जिन पर आमतौर पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS) और अन्य ग्रुप ‘ए’ सेवाओं के अधिकारियों की तैनाती होती है। लेटरल एंट्री से नियुक्ति के लिए उम्मीदवार को कम से कम 15 वर्षों का कार्यानुभव होना चाहिए और उसकी उम्र न्यूनतम 45 वर्ष होनी चाहिए।

Lateral Entry के विरोध के कारण

Lateral Entry की सबसे बड़ी आलोचना इस बात को लेकर हो रही है कि इसमें अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के उम्मीदवारों के लिए कोई आरक्षण नहीं है। विपक्षी दलों का मानना है कि यह व्यवस्था आरक्षण को कमजोर करने का प्रयास है, जिससे बहुजन समाज को नुकसान होगा। इसके अलावा, यह भी कहा जा रहा है कि इस प्रकार की नियुक्तियों से वर्तमान सरकारी अधिकारियों का मनोबल गिर सकता है और नौकरशाही में तालमेल की समस्या पैदा हो सकती है।

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Lateral Entry: एक इतिहास

Lateral Entry की अवधारणा नई नहीं है। 1966 में मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में बने पहले ‘प्रशासनिक सुधार आयोग’ ने विशेष स्किल वाले लोगों की जरूरत पर जोर दिया था, लेकिन तब लेटरल एंट्री की चर्चा नहीं हुई थी। इसके बाद 2005 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने दूसरे ‘प्रशासनिक सुधार आयोग’ का गठन किया, जिसने लेटरल एंट्री की सिफारिश की थी।

आरक्षण का सवाल

केंद्र सरकार की लेटरल एंट्री की नीति में एससी/एसटी/ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षण नहीं रखा गया है, जिसके कारण इसकी आलोचना हो रही है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सरकार के ‘कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग’ द्वारा 2018 में जारी सर्कुलर में कहा गया था कि 45 दिनों या उससे अधिक समय की अस्थायी नियुक्तियों में एससी/एसटी/ओबीसी के उम्मीदवारों के लिए आरक्षण होना चाहिए। हालांकि, लेटरल एंट्री के मामले में इसे लागू नहीं किया गया है।

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सरकार के इस फैसले को आरक्षण छीनने वाली नीति के रूप में देखा जा रहा है। विपक्षी दल और कई अन्य लोग इस बात को लेकर चिंतित हैं कि लेटरल एंट्री से सरकार समर्थक लोगों को मंत्रालयों में जगह दी जा सकती है, जिससे नीतियों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।

इस पूरी प्रक्रिया के चलते लेटरल एंट्री को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है और इसे आरक्षण व्यवस्था को कमजोर करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।

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