Kanwar Yatra की पहली कथा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, Kanwar Yatra की शुरुआत भगवान परशुराम ने की थी। कहा जाता है कि ऋषि जमदग्नि के पुत्र, भगवान परशुराम, गढ़मुक्तेश्वर धाम से गंगाजल लेकर आए थे और उत्तर प्रदेश के पुरा महादेव पर जल अर्पित किया था। आज भी इस प्राचीन परंपरा को सावन के महीने में अधिक संख्या में शिव भक्त निभाते हैं। गढ़मुक्तेश्वर से लाए गए गंगाजल को पुरा महादेव पर चढ़ाकर भक्त भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं।
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कांवड़ यात्रा की दूसरी कथा
कुछ अन्य धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कांवड़ यात्रा की शुरुआत त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने की थी। कथा के अनुसार, श्रवण कुमार के माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा व्यक्त की थी। श्रवण कुमार ने इस इच्छा की पूर्ति के लिए अपने माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार लेकर गए और उन्हें गंगा स्नान कराया। वहां से वह गंगाजल भी अपने साथ लाए थे। इसे ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है।
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पंचांग के अनुसार, इस बार कांवड़ यात्रा की शुरुआत 22 जुलाई 2024 से हुई और इसका समापन 2 अगस्त 2024, सावन शिवरात्रि के दिन होगा। इस दौरान शिव भक्त गंगा नदी से जल भरकर अपने गंतव्य की ओर पैदल यात्रा कर रहे हैं और शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाकर भगवान शिव की आराधना करेंगे।
कांवड़ यात्रा का महत्व
कांवड़ यात्रा भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह यात्रा न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक और सामुदायिक भावना को भी प्रकट करती है। हर साल लाखों श्रद्धालु इस यात्रा में भाग लेते हैं और भगवान शिव के प्रति अपनी आस्था और भक्ति व्यक्त करते हैं।
यात्रा के दौरान सावधानियां
यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को स्वास्थ्य और सुरक्षा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसके अलावा, सरकार और प्रशासन की ओर से भी यात्रा के दौरान सुरक्षा और सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा जाता है। सभी श्रद्धालुओं को यात्रा के दौरान नियमों का पालन करना चाहिए और सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करनी चाहिए।
कांवड़ यात्रा भारतीय समाज में धार्मिक उत्साह और सामूहिकता का प्रतीक है, जो हर साल लाखों श्रद्धालुओं को भगवान शिव की भक्ति में लीन होने का अवसर प्रदान करती है।
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