हाल ही में कांवड़ यात्रा के दौरान भगवान वराह की मूर्तियां स्थापित करने की मांग जोर पकड़ रही है। यह जानना महत्वपूर्ण है कि भगवान वराह कौन हैं और उनकी पूजा का महत्व क्या है, जो इस मांग के पीछे का कारण बनता है।
भगवान Varaha का परिचय
भगवान वराह हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के तीसरे अवतार माने जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान वराह ने एक विशाल जंगली सूअर का रूप धारण किया था और पृथ्वी को जल के अथाह सागर से बचाया था। इस कथा के अनुसार, जब असुर हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को समुद्र में डुबो दिया था, तब भगवान विष्णु ने वराह रूप में अवतार लेकर पृथ्वी को अपने दांतों पर उठाकर सुरक्षित स्थान पर स्थापित किया। इस पराक्रमी कार्य के कारण भगवान वराह को संरक्षक और उद्धारक के रूप में पूजा जाता है।
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कांवड़ यात्रा में भगवान वराह की मूर्तियों की मांग
कांवड़ यात्रा एक महत्वपूर्ण धार्मिक यात्रा है, जिसमें श्रद्धालु हरिद्वार, गौमुख और गंगोत्री जैसे पवित्र स्थलों से गंगा जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। यह यात्रा विशेष रूप से उत्तर भारत में प्रसिद्ध है और शिव भक्तों द्वारा सावन महीने में की जाती है।
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हाल ही में, कांवड़ यात्रा के दौरान भगवान वराह की मूर्तियां स्थापित करने की मांग उठी है। इस मांग के पीछे कई कारण हो सकते हैं:
- संरक्षण का प्रतीक: भगवान वराह को पृथ्वी के उद्धारक के रूप में मान्यता प्राप्त है। उन्हें पूजा जाने से कांवड़ यात्रियों में सुरक्षा और संरक्षण की भावना बढ़ती है।
- धार्मिक आस्था: हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के सभी अवतारों का विशेष महत्व है। भगवान वराह की पूजा से उनकी आस्था को और मजबूती मिलती है।
- समाज में जागरूकता: भगवान वराह की कथा और उनकी महिमा के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
- धार्मिक एकता: भगवान वराह की मूर्तियों की स्थापना से कांवड़ यात्रियों के बीच एकता और सामूहिकता की भावना बढ़ती है।
भगवान वराह की मूर्तियों को कांवड़ यात्रा के दौरान स्थापित करने की मांग उनके प्रति श्रद्धा और धार्मिक आस्था का प्रतीक है। भगवान वराह की पूजा से न केवल यात्रियों में सुरक्षा और संरक्षा की भावना प्रबल होती है, बल्कि उनकी धार्मिक आस्था भी और गहरी होती है। इस मांग को लेकर यात्रियों में उत्साह और एकता का संचार हो रहा है, जो कांवड़ यात्रा को और भी महत्वपूर्ण बना रहा है।
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