UP के जौनपुर जिले के हौज गांव में स्थित शहीद स्मारक एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर है, जो भारत की आजादी की लड़ाई में इस गांव के योगदान की याद दिलाता है। इस स्मारक पर एक कवि की लिखी पंक्तियाँ, “शहीदों की चिंताओं पर लगेगा हर बरस मेला, यह निशा बाकी होगा,” पूरी तरह से सटीक बैठती हैं। हौज गांव ने 1857 की स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख भूमिका निभाई थी, और इस गांव के लोगों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष करते हुए कई अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया था।
इस गांव का नाम इतिहास के पन्नों में उस वक्त अमर हो गया जब अंग्रेजी हुकूमत ने इस गांव के 15 लोगों को एक साथ सूली पर चढ़ा दिया। 1857 की क्रांति के दौरान, हौज गांव के जमींदार बालदत्त ने अपने साथियों के साथ मिलकर अंग्रेज अफसरों के खिलाफ विद्रोह किया था। पांच जून 1857 को बालदत्त और उनके साथी अंग्रेजी हुकूमत के एक दर्जन से अधिक अफसरों की हत्या कर दी। इस विद्रोह के बाद, कुछ देशद्रोहियों की गवाही पर 15 ग्रामीणों को फांसी की सजा दी गई, और बालदत्त को काला पानी की सजा सुनाई गई।
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UP: गांव के बुजुर्गों के अनुसार, जब आजादी की पहली क्रांति की चिंगारी जली, तो बालदत्त ने युवाओं की एक टोली तैयार की। उन्होंने जौनपुर के अंग्रेज अफसरों को घेर कर उनका वध किया और उनके शवों को दफ्न कर दिया। लेकिन इस विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने गांव के 15 लोगों को फांसी पर चढ़ा दिया और बालदत्त को काला पानी की सजा दी।
आज़ादी के बाद, इस गांव के शहीदों की याद में 1986 में एक स्मारक स्तंभ बनाया गया। यह स्मारक उन वीरों की याद में स्थापित किया गया, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। इस स्मारक पर हर साल 15 अगस्त को मेला लगाया जाता था, जिसमें नेता, मंत्री, और अधिकारी शामिल होते थे और शहीदों को नमन करते थे। साथ ही, सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते थे।
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UP: लेकिन समय के साथ, इस स्मारक और गांव में होने वाले विकास कार्यों को लेकर विवाद शुरू हो गए। विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े लोग एक-दूसरे के लगाए गए पत्थरों को उखाड़ फेंकने लगे, जिसके कारण मेला लगना बंद हो गया। आज, यह स्मारक उपेक्षा का शिकार हो गया है। संगमरमर की परतें उखड़ने लगी हैं और शहीदों के नाम धूमिल हो रहे हैं। अगर जल्द ही कोई कदम नहीं उठाया गया, तो अगले कुछ वर्षों में शहीदों के नाम पूरी तरह से मिट सकते हैं।
यह स्मारक न केवल हौज गांव की शौर्यगाथा का प्रतीक है, बल्कि यह उस त्याग और बलिदान की याद दिलाता है, जिसने हमें स्वतंत्रता दिलाई। ऐसे स्मारकों की सुरक्षा और संरक्षण हमारे लिए एक नैतिक जिम्मेदारी है।