स्वामी सहजानंद सरस्वती और Suresh Chavhanke के विशेष संवाद में पर्यावरण संरक्षण और सनातन धर्म पर चर्चा

Suresh Chavhanke के साथ एक विशेष संवाद किया। इस चर्चा में न केवल सुरेश चव्हाणके के जीवन और पत्रकारिता के सफर पर प्रकाश डाला गया, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में सनातन धर्म की भूमिका और स्वामी जी के प्रयासों पर गहराई से चर्चा हुई।

संवाद की मुख्य बातें

  1. पर्यावरण संरक्षण में सनातन धर्म की भूमिका

स्वामी सहजानंद सरस्वती ने कहा कि सनातन धर्म का मूल सिद्धांत “प्रकृति के साथ संतुलन” है। उन्होंने यह बताया कि प्राचीन शास्त्रों और वेदों में प्रकृति को देवता के रूप में पूजने का प्रावधान है। प्रत्येक प्राकृतिक तत्व—चाहे वह वायु हो, जल हो, अग्नि हो या पृथ्वी—के प्रति आदर और संरक्षण की भावना सनातन धर्म की नींव में निहित है।

यहां हमारे व्हाट्सएप चैनल से जुड़ें

वृक्षों की पूजा

पीपल और तुलसी जैसे वृक्षों की पूजा करना न केवल धार्मिक है, बल्कि यह पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में सहायक है।

यज्ञ और हवन

ये न केवल आध्यात्मिक शुद्धि के लिए हैं, बल्कि वायुमंडल को शुद्ध करने के भी उपाय हैं।

गोसेवा का महत्व

गौमाता के संरक्षण को प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक बताया गया।

  1. महामृत्युंजय यंत्र का महत्व

स्वामी जी ने अपने विशेष योगदान, “महामृत्युंजय यंत्र,” का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि यह यंत्र न केवल मानसिक शांति और सकारात्मकता बढ़ाने में सहायक है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता भी फैलाता है। 2025 के कुंभ मेले के दौरान प्रयागराज के संगम तट पर एक विशाल महामृत्युंजय यंत्र स्थापित किया जाएगा।

उद्देश्य: इस यंत्र का उद्देश्य मानसिक प्रदूषण को कम करना है, जिससे व्यक्ति प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर सके।

संदेश: कुंभ मेले जैसे विशाल आयोजन के माध्यम से यह संदेश दिया जाएगा कि अध्यात्म और पर्यावरण संरक्षण एक-दूसरे के पूरक हैं।

यहां हमारे ट्विटर से जुड़ें

  1. पूर्णकुंभ 2025 में पर्यावरण संरक्षण के प्रयास

स्वामी जी ने कहा कि 2025 का कुंभ मेला पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक बनेगा। उन्होंने इस आयोजन में शामिल धार्मिक समुदायों और श्रद्धालुओं से अपील की कि वे प्लास्टिक के उपयोग को सीमित करें, गंगा की स्वच्छता बनाए रखें, और वृक्षारोपण जैसे अभियानों में भाग लें।

धार्मिक आयोजनों में हरित पहल: स्वामी जी ने सुझाव दिया कि हर धार्मिक आयोजन को पर्यावरणीय जिम्मेदारी के साथ जोड़ा जाए।

गंगा का संरक्षण

संगम तट पर स्वच्छता अभियान और जल प्रदूषण को रोकने के लिए विशेष कदम उठाए जाएंगे।

  1. सनातन संस्कृति और शिक्षा का महत्व

स्वामी जी ने इस बात पर जोर दिया कि पर्यावरण संरक्षण की शिक्षा को सनातन धर्म के सिद्धांतों के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाना चाहिए।
बच्चों को प्राचीन संस्कृत श्लोक और पर्यावरणीय ज्ञान सिखाने की पहल।
समाज में जागरूकता बढ़ाने के लिए धर्मगुरुओं और धार्मिक संस्थाओं की भूमिका को रेखांकित किया।

स्वामी जी के प्रयासों का महत्व

स्वामी सहजानंद सरस्वती ने अपनी सोच और कार्यों से यह स्पष्ट किया कि आधुनिक समस्याओं का समाधान हमारे प्राचीन ज्ञान और सनातन धर्म के सिद्धांतों में छिपा है।
उनकी सोच का केंद्र बिंदु है कि “मनुष्य प्रकृति का हिस्सा है, उसका स्वामी नहीं।”
उन्होंने कहा, “यदि हम प्रकृति का सम्मान करेंगे, तो वह हमारी रक्षा करेगी। लेकिन यदि हमने उसका संतुलन बिगाड़ा, तो परिणाम विनाशकारी होंगे।”

समाज के लिए संदेश

इस संवाद के माध्यम से स्वामी सहजानंद सरस्वती और सुरेश चव्हाणके ने पर्यावरण संरक्षण और सनातन धर्म के अद्वितीय संबंध को उजागर किया। स्वामी जी ने सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों को अपनाने की अपील करते हुए कहा कि “प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखना ही हमारी सबसे बड़ी धार्मिक और नैतिक जिम्मेदारी है।”

यह संवाद समाज को यह सोचने पर मजबूर करता है कि पर्यावरण संरक्षण न केवल एक वैज्ञानिक मुद्दा है, बल्कि यह हमारी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत का भी अभिन्न हिस्सा है।

और पढ़ें

TAGGED:
Share This Article
मनीष कुमार एक उभरते हुए पत्रकार हैं और हिंदी States में बतौर Sub-Editor कार्यरत हैं । उनकी रुचि राजनीती और क्राइम जैसे विषयों में हैं । उन्होंने अपनी पढ़ाई IMS Noida से की है।
Exit mobile version