UP Lok Sabha :कहते हैं जिस दल को दिल्ली की गद्दी पर राज करना है उसे यूपी में ठहरना होता है। सत्ताधारी पार्टी बीजेपी इसे लेकर आश्वस्त थी लेकिन कल आये नतीजों ने पार्टी, समर्थक, कार्यकर्ताओं की कलई खोल कर रख दी। कल आये नतीजे बीजेपी को सोने नहीं दे रहे। हालाँकि NDA ने सरकार बनाने का आकड़ा पार कर लिया है। बीजेपी वो पार्टी है जो एक चुनाव में आए नतीजों की समीक्षा कर तुरंत दूसरे चुनाव की तैयारियों में जुट जाती है।
तो जानते हैं यूपी में पिछले दो लोकसभा चुनाव में दमदार प्रदर्शन करने वाली बीजेपी के फिसड्डी साबित होने के क्या कारण रहे!
बसपा प्रमुख मायावती का 9 से 10 % वोट घटकर सपा पर गया, 2014 में 42 % वोट पाकर बीजेपी ने 71 सीटें जीती थी, तब बसपा को भी 19% वोट मिला था। इस बार बीजेपी 2014 जैसा ही 42.65 % वोट लाने के बावजूद पिछड़ गई, सिर्फ इसलिए कि बसपा मुकाबले से बाहर हो गई। इसका मुख्य कारण है बीजेपी के कुछ बयानवीरों द्वारा सत्ता में वापसी पर संविधान में बदलाव करने की बात कहना जिस पर “दलित मतदाता” सपा की तरफ रुख कर गया। जब तक बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने सफारी दी तब तक बहुत देर हो चुकी थी। दलित और मुस्लिम मतदाताओं ने बीजेपी को दरकिनार कर एक मुश्त इंडी गठबंधन को वोट दिया।
- विपक्ष का कहना है जनता में मोदी के प्रति गुस्सा था!
अगर मोदी के खिलाफ सचमुच गुस्सा होता तो फिर बिहार, झारखंड, एमपी, दिल्ली और छत्तीसगढ़ में क्यों नहीं दिखा? इन राज्यों में बीजेपी के लिए बहुत अच्छे नतीजे रहे। - सोशल मीडिया पर कुछ ट्रोलर्स द्वारा अयोध्या के लोगों को गाली देना उनकी ट्रोलिंग करना कितना जायज है!
आज चारों तरफ अयोध्या का जिक्र है। राम मंदिर बनने के दौरान यहीं जमीन की बंपर धांधली हुई। उसमें अधिकारियों के नाम आए, नेताओं के नाम आए। मामला दब गया। तोड़फोड़ में मनमानी हुई। यहां के सांसद ने सबसे पहले संविधान बदलने की बात कही। पहली बार दलितों का वोट छिटका। प्रत्याशी का फीडबैक साइड किया गया। कई ऐसे गांव और मोहल्ले हैं जहां पर विधायक और सांसद आज तक नहीं गए हैं। अब जब विपक्षी दौड़-दौड़ कर हर क्षेत्र में प्रचार कर रहा है। उन क्षेत्रों में लोगों तक यदि आप पहुंचेंगे ही नहीं तो ऐसी अप्रत्याशित हार पर आप लोगों को ही दोष देंगे?
आप यह मान कर चलिए की 80% हिंदू आबादी ने 100% मतदान नहीं किया वहीं 20% मुस्लिम आबादी में से कम से कम 17-18% लोगों ने वोट दिया होगा। उन 80% लोगों में से भी कांग्रेस और सपा के कोर वोटर्स के साथ दलित भी जुड़ा। जो इधर से ही छिटका है। अयोध्या में चौड़ी सड़कों, हाईवे, स्टेशन, एयरपोर्ट को देखते हुए विकास के पैमाने खीचिए पर एक बहुत महत्वपूर्ण कारण अपने मन में बैठ कर रखिए कि स्थानीय असंतोष बहुत बड़ी चीज होती है। जब यह असंतोष आपकी जमीन और संपत्ति को लेकर हो तब तो और ! अयोध्या में यदि 20% लोगों की आय बढ़ी है। तो 80% लोगों की जमा-पूंजी,बनाया हुआ घर, रोजी-रोटी खत्म हो गई है। उन्हें विस्थापित होना पड़ा है। दूसरे राज्य से आये लोगों ने लोकल का व्यापार ख़त्म कर अपना जमाया।
- अगर बीजेपी सत्ता में वापसी करेगी तो योगी की कुर्सी जाएगी!
देशभर में लोकप्रिय यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को रिप्लेस करने की चर्चा हर दूसरे दिन उड़ी लेकिन शीर्ष से इसका खंडन नहीं किया गया, जेपी नड्डा ने जब खंडन किया भी तब तक बहुत देर हो चुकी थी। योगी ने प्रदेश में एक मजबूत लॉ एंड आर्डर की स्थापना की है। जनता को लगा अगर योगी को सीएम पद से हटाया जाएगा तो हमारा क्या होगा? चलो मान लिया उत्तर प्रदेश में 80 में से 78 प्रत्याशी कमजोर उतारे गए। दिल्ली ने टिकट बांटा आदि। लेकिन बनारस से मोदी और लखनऊ से राजनाथ भी क्या कमजोर प्रत्याशी थे जो 2 लाख से भी कम अंतर से जीते। उत्तर प्रदेश में कुछ बड़ा हुआ है, जिसपर पर्दा डालने की नहीं बल्कि कुछ खामियों को दूर करने की जरूरत है।
UP Lok Sabha: RSS और ABVP से दूरी पड़ी महंगी!
RSS की भाजपा से नाराजगी इतनी अधिक थी कि जब प्रचार चरम पर था तब RSS ने द्वितीय वर्ष का अभ्यास वर्ग नागपुर में रख दिया। जो 27 दिन का होता, दो दिन समारोह यानी 29 दिन। लाखों पूर्णकालिक स्वयंसेवक नागपुर चले गये। प्रचार कौन करता? BJP अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक इंटरव्यू में यहाँ तक कह दिया बीजेपी को संघ की जरूरत नहीं। ABVP के ऐसे लोगों को मंत्रियों के साथ जनसंपर्क अधिकारी लगाया गया जो एबीपी सदस्यों की मदद के स्थान सत्ता सुख में लिप्त हो गये। बड़े दायित्व अधिकारी कुलपतियों, रजिस्ट्रार, विभागाध्यक्षों के साथ नये समीकरणों में संलिप्त। युवा सदस्यों के हितों की अनदेखी हुई।
- वोट मांगते समय मौजूदा सांसद, विधायकों, प्रत्याशियों ने सिर्फ जपी मोदी नाम की माला
भाजपा के ओहदेदारों का अहंकार चरम पर था। हर कोई खुद को मोदी, योगी और शाह समझने लगा था, नेता अपने हिसाब से लोगों से मिल रहे थे। मूल कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हो रही थी। भाजपा ने ऐसे-ऐसे प्रत्याशी उतारे जिनके खिलाफ जनाक्रोश नेत्रहीन को दिखाई दे रहा था फिर भी टिकट दिया गया। मंत्रियों, विधायकों और खुद सांसद ने जिलों के कार्यकर्ताओं की भीषण उपेक्षा की।
युवाओं का भी गुस्सा बीजेपी के खिलाफ EVM में आया नजर!
जब विपक्ष ने पेपर लीक का सवाल उठाया तब ऐसा माहौल बना कि भाजपा में ही यह हो रहा। गैर भाजपा सरकार के भर्ती घोटालों को उठाने का भाजपा के पास आधार ही नहीं बचा। यूपी में रुकी हुई भर्तियों को खोलने में समय लगा। जब भर्तियां चालू हुई तो पेपर लीक का भाजपा को दंश झेलना पड़ा इससे युवाओं ने अपने आप को ठगा हुआ महसूस किया।
- बड़े नेता को टारगेट करना पड़ा भारी!
खनन घोटाले में गैर भाजपा के एक शीर्ष नेता को CBI ने नोटिस दिया और चुप्पी साध गयी। इससे मुस्लिम मतदाताओं में संदेश गया कि उनके सियासी रहनुमा को परेशान किया जा रहा। पढ़े लिखे, तर्कशील हिन्दू मतदाताओं ने निष्कर्ष निकाला की सब एक हैं। यह भाव बनते ही सांप्रयादिक सौहार्द को जरूरी मानते हुए इस वर्ग ने भाजपा के खिलाफ वोट कर दिया। - थाने, तहसीलों में कार्यकर्ताओं की न सुनना!
भाजपा का कार्यकर्ता अनुशासन के लिए जाना जाता है उसने देखा थाने, तहसीलों स्तर पर उसके कार्य नहीं हो रहे जबकि सपा-बसपा सरकार में उनके कार्यकर्ताओं के काम एक झटके में होते थे इस कारण भी भाजपा का कार्यकर्ता साइलेंट रहा।
नोट: यह चुनावी आंकलन सोशल मीडिया पर चल रही चर्चा, पार्टी कार्यकर्ता एवं मतदाताओं से बातचीत कर किया गया है।