Gandhi Jayanti 2024: व्यक्तित्व बहुत ही गहन और विरोधाभासी था। वे कठोर और मृदु दोनों थे। अपरिचितों और विरोधियों के प्रति वे लचीले थे, जबकि अपने निकटतम और प्रियजनों के साथ वे कड़ाई और सख्ती से पेश आते थे। इस प्रकार के गुण उन्हें एक जटिल और प्रभावशाली नेता बनाते थे, जो अपने अनुयायियों के लिए प्रेरणा का स्रोत थे।
खुद के प्रति सबसे कठोर
गांधी जी अपने प्रति सबसे अधिक कठोर थे। वे अपने व्यवहार में किसी भी दोष को तुरंत पहचानते और उसे सुधारने के लिए तत्पर रहते थे। उनके सचिव नारायण देसाई ने उल्लेख किया, “गांधी जी के साथ रहना एक ज्वालामुखी के मुख पर रहना जैसा है, जो कभी भी फूट सकता है।” गांधी जी हमेशा अपनी गलतियों को स्वीकारने और सुधारने के लिए तैयार रहते थे, जिससे उनके अनुयायियों का विश्वास और सम्मान बढ़ता गया।
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हमेशा सीखने को तैयार
Gandhi Jayanti 2024: गांधी जी ने अपने जीवन में कभी भी विचारों को स्थिर नहीं रखा। वे सत्य की खोज में लगे रहते थे और नए अनुभवों से सीखते रहते थे। 29 अप्रैल 1933 को उन्होंने ‘हरिजन’ में लिखा, “सत्य की खोज में मैंने कई विचार त्याग दिए और कई नई बातें सीखी हैं।” उनका दृष्टिकोण निरंतर विकसित होता रहा, जिससे वे हमेशा प्रगतिशील बने रहे।
अहिंसा की परिभाषा का विस्तार
गांधी जी ने अहिंसा को केवल एक नीतिगत सिद्धांत नहीं माना, बल्कि इसे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया। वे अहिंसा के महत्व को समझते थे और इसे अपने कार्यों में लागू करते थे। गांधी जी ने कभी भी हिंसा का सहारा नहीं लिया, बल्कि सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते रहे।
शीघ्रता करें, संक्षिप्त कहें, विदा लें
गांधी जी समय की पाबंदी और हर क्षण के सदुपयोग पर अत्यधिक जोर देते थे। वे हमेशा कार्यों को शीघ्रता से पूरा करने, संक्षिप्त बोलने और समय पर विदा लेने की सलाह देते थे। यह गुण उन्हें एक प्रभावशाली और अनुशासित नेता बनाते थे।
वायसराय से बातचीत: मानवीय संवेदना
Gandhi Jayanti 2024: 1939 की गर्मियों में शिमला में वायसराय के साथ बातचीत के दौरान गांधी जी ने दिखाया कि वे मानवीय संवेदना के प्रति कितने संवेदनशील थे। उन्होंने कुष्ठ रोग से पीड़ित शास्त्री परचुरे को आश्रम में शरण देने का निर्णय लिया और उनकी देखभाल की। यह घटना उनकी मानवीयता और सहानुभूति को दर्शाती है।