पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने ‘One Nation One Election’का समर्थन किया; 3 पूर्व उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों ने जताई आपत्ति

One Nation One Election’ की पहल पर देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों के बीच समर्थन और विरोध के स्वर सामने आ रहे हैं। कई पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने इस विचार का समर्थन किया है, उनका मानना है कि इससे देश की संसदीय और विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया को अधिक संगठित और सुसंगत बनाया जा सकता है। उनका कहना है कि यह न केवल चुनावी खर्चों को कम करेगा, बल्कि प्रशासनिक दक्षता भी बढ़ाएगा।

हालांकि, तीन पूर्व उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों ने इस पहल पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि ‘एक देश, एक चुनाव’ का विचार भारतीय संघीय ढांचे को कमजोर कर सकता है। वे यह तर्क देते हैं कि इस योजना से राज्यों की स्वतंत्रता और स्वायत्तता पर खतरा हो सकता है, और इसका संविधान के संघीय सिद्धांतों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

यह विवादित मुद्दा अब राजनीतिक और कानूनी बहस का विषय बन गया है, जहां समर्थन और विरोध की दोनों आवाजें जोर पकड़ रही हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में इस पर क्या कानूनी और राजनीतिक निर्णय लिए जाते हैं।

‘One Nation One Election’ पर चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों का समर्थन, कुछ ने जताई आपत्ति

One Nation, One Election की पहल पर भारतीय राजनीति और न्यायपालिका में चर्चा जोरों पर है। हाल ही में, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी उच्चस्तरीय समिति ने इस प्रस्ताव पर विचार-विमर्श किया। समिति ने देशभर में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की, जिससे चुनावी खर्च कम करने और प्रशासनिक सुधार लाने की उम्मीद जताई जा रही है।

पूर्व मुख्य न्यायाधीशों का समर्थन

उच्चस्तरीय समिति द्वारा परामर्श किए गए चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने इस पहल का समर्थन किया है। इन पूर्व सीजेआई में दीपक मिश्रा, रंजन गोगोई, शरद अरविंद बोबडे और यूयू ललित शामिल हैं। इन सभी ने व्यक्तिगत रूप से विचार-विमर्श किया और लिखित में अपनी प्रतिक्रिया दी, जिसमें उन्होंने ‘एक देश, एक चुनाव’ के विचार का समर्थन किया।

  • दीपक मिश्रा: 28 फरवरी को लिखे गए एक पत्र में पूर्व सीजेआई दीपक मिश्रा ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह दावा कि ‘एक देश, एक चुनाव’ संविधान के बुनियादी ढांचे, संघवाद, या लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ है, निराधार है।
  • रंजन गोगोई: पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई ने इस योजना का समर्थन करते हुए कई फायदे गिनाए, जिनमें चुनावी खर्च की बचत, प्रशासनिक सरलता, मतदाता जुड़ाव में वृद्धि, और पैसे व बाहुबल के प्रभाव को कम करना शामिल है। उन्होंने इसे लागू करने के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
  • शरद अरविंद बोबडे: फरवरी 2024 में रामनाथ कोविंद से मुलाकात के दौरान बोबडे ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने से लोकतांत्रिक और संघीय ढांचे पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
  • यूयू ललित: 49वें मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित ने कहा कि बार-बार चुनाव कराने से विकास कार्यों में बाधा उत्पन्न होती है, क्योंकि बार-बार आचार संहिता लागू हो जाती है। एक साथ चुनाव से न केवल लोकतांत्रिक सिद्धांत मजबूत होंगे, बल्कि सार्वजनिक खर्च भी कम होगा।

संविधान संशोधन और क्रियान्वयन की रणनीति

पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने इस पहल को लागू करने के लिए आवश्यक संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता पर भी जोर दिया। रंजन गोगोई ने सुझाव दिया कि ‘एक देश, एक चुनाव’ के लिए सर्वसम्मति बनानी होगी, एक मजबूत विधायी ढांचे का निर्माण करना होगा और मतदाताओं में जागरूकता बढ़ानी होगी। इस पहल का उद्देश्य लोकतंत्र को और भी सशक्त बनाना है, जिसमें चुनावी प्रक्रिया में सुधार और अधिक मतदाता जुड़ाव पर विशेष ध्यान दिया गया है।

न्यायिक समर्थन के बावजूद कुछ ने जताई आपत्ति

हालांकि, न्यायिक समुदाय में इस पहल पर व्यापक समर्थन है, लेकिन कुछ पूर्व न्यायाधीशों ने इसके खिलाफ आपत्ति भी जताई है। रिपोर्ट के अनुसार, बारह पूर्व उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से भी परामर्श लिया गया था, जिनमें से नौ ने ‘एक देश, एक चुनाव’ का समर्थन किया, जबकि तीन ने इसके खिलाफ आपत्ति जताई। उनकी चिंता यह थी कि यह पहल संघीय ढांचे और राज्यों की स्वायत्तता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।

विकास और निर्णय प्रक्रिया में बाधा

यूयू ललित ने बार-बार चुनावों के कारण उत्पन्न आचार संहिता और निर्णय प्रक्रिया में आने वाली बाधाओं को रेखांकित किया। उनके अनुसार, बार-बार आचार संहिता लागू होने से सरकारी योजनाओं और विकास कार्यों में देरी होती है, जिससे निर्णय प्रक्रिया प्रभावित होती है। इसके चलते एक साथ चुनाव कराने से इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।

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