UP की राजनीति में एक बड़ा बदलाव तब देखा गया जब समाजवादी पार्टी (सपा) ने माता प्रसाद पांडेय को यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाने का निर्णय लिया। यह कदम ब्राह्मण कार्ड खेलने के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि यूपी में करीब 12 फीसदी ब्राह्मण मतदाता हैं। सपा के इस निर्णय से राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है, क्योंकि पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस फैसले को बड़ी चतुराई से लिया और किसी को भनक तक नहीं लगने दी।
समाजवादी पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, नेता प्रतिपक्ष के पद के दावेदारों में अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव और पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के कई विधायक भी शामिल थे। हालांकि, अखिलेश यादव ने 2027 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए माता प्रसाद पांडेय के लंबे राजनीतिक अनुभव और ब्राह्मण समुदाय में उनके प्रभाव को ध्यान में रखकर यह फैसला लिया।
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ब्राह्मणों को सपा में अहमियत देने का संदेश देने के लिए माता प्रसाद पांडेय का चयन किया गया। इसके पीछे एक और महत्वपूर्ण कारण यह है कि सपा के कई ब्राह्मण विधायक, जैसे मनोज पांडेय, राकेश पांडेय, और विनोद चतुर्वेदी ने भाजपा का साथ दिया था, जिससे ब्राह्मण समाज में सपा की स्थिति कमजोर हो गई थी। इस कदम से सपा ने ब्राह्मण समाज को यह संदेश देने की कोशिश की है कि पार्टी में उनकी अहमियत अभी भी बरकरार है और सपा अगड़ों से कोई परहेज नहीं करती।
माता प्रसाद पांडेय का चयन सपा के अंदरूनी गुटबाजी को कम करने के प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है। मुलायम सिंह यादव के भरोसेमंद रहे माता प्रसाद पांडेय का सपा में एक सम्मानित स्थान है और उनके चयन से पार्टी के भीतर की खींचतान को भी थामा जा सकेगा। इसके अलावा, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का यह निर्णय उनके नेतृत्व कौशल और राजनीतिक परिपक्वता को भी दर्शाता है।
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सपा के इस कदम से पार्टी के भीतर और बाहर दोनों ही स्थानों पर सकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं का मानना है कि माता प्रसाद पांडेय के नेतृत्व में सपा को एक नई दिशा मिलेगी और 2027 के विधानसभा चुनावों में यह फैसला महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। इसके साथ ही, पार्टी ने यह भी संकेत दिया है कि वह ब्राह्मण मतदाताओं के साथ-साथ अन्य समुदायों को भी समान रूप से महत्व देती है।
इस राजनीतिक चाल से सपा ने न केवल अपने विरोधियों को चौंका दिया है, बल्कि ब्राह्मण समुदाय में भी एक मजबूत संदेश भेजा है। अब देखना यह है कि माता प्रसाद पांडेय के नेतृत्व में सपा कैसे अपने राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करती है और 2027 के चुनावों में अपनी स्थिति को कैसे मजबूत करती है।
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